मंगलागौरी-व्रत विधि | Mangala Gauri Vrat vidhi | Mangla Gauri Vrat

श्रावण मास के सभी मंगलवार को मंगलागौरी-व्रत किया जाता है। इस व्रत में पार्वती माता की पूजा की जाती है। यह व्रत विवाह के बाद पड़ने वाले प्रथम सावन के मंगलवार से शुरु किया जाता है और पाँच वर्ष तक किया जाता है। पहले वर्ष इस व्रत को अपने मायके (माता के घर) में करना चाहिये। उसके बाद से अगले चार वर्ष तक अपने ससुराल (पति के घर) पर इस व्रत को करें। इस व्रत को करने से पति-पत्नी के प्रेम-सम्बंध में प्रगाढ़ता आती है। उनका कभी एक-दूसरे वियोग नहीं होता। इस व्रत से अटल सौभाग्य, सुख और सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।

मंगला गौरी व्रत पूजा सामग्री | Puja Samagri list for Mangala gauri vrat

मंगला गौरी व्रत पूजा विधि:- mangla Gauri Puja Vidhi

व्रत के दिन प्रातःकाल उठकर नित्यकर्म से निवृत हो स्नान करें। स्वच्छ नवीन वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को साफ तथा शुद्ध कर लें । सभी पूजन सामग्री एकत्रित कर पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठ जायें। लकड़ी के पाटे अथवा चौकी को सामने रखें। उस पर लाल वस्त्र बिछायें। चौकी पर गौरी माँ की मूर्ति स्थापित करें ।
सबसे पहले हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र उच्चारण के द्वारा स्वयं पर जल छिड़ककर अपने आप को शुद्ध कर लें”-
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥

उसके बाद हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र उच्चारण के द्वारा सभी पूजन सामग्री पर जल छिड़ककर पूजन सामग्री को शुद्ध कर लें”-
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥


तत्पश्चात् अपने आत्मा की शुद्धि के लिये पुष्प अथवा चम्मच से मुख में एक-एक बूंद जल डलकर निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें:-
ॐ केशवाय नमः
ॐ नारायणाय नमः
ॐ वासुदेवाय नमः

इसके बाद “ॐ हृषिकेशाय नमः” कहते हुये अंगूठे से होंठ को पोछ ले।
गणेश पूजन:-
किसी पात्र या कटोरी में गणेश जी की मूर्ति रखकर चौकी पर रखें। धूप दीप, अक्षत, चंदन, पुश्प और नैवेद्य अर्पित कर गणेश जी का पूजन करें।

मंत्र उच्चारण के बाद सभी सामग्री माँ गौरी के चरणों में समर्पित करें।

मंगला गौरी व्रत की कथा तथा महात्म्य को सुनें अथवा सुनायें। दोनों हाथ जोड़कर निम्न मंत्र से प्रार्थना करें:-
पृथिव्यादीनि भूतानि यानि प्रोक्तिनि पञ्च च।
यस्यारूपाणी देवेशि पूजांगृह्ण नमोऽस्तुते॥


माँ गौरी की आरती करें। आरती का प्रोक्षण कर सभी देवी-देवता को आरती दें। स्वयं आरती लें और उपस्थित जनों को भी आरती दें। माँ गौरी से पूजा में हुई जाने या अनजाने में किसी भी प्रकार के भूल के लिये क्षमा माँगे। सुहाग की पिटारी पहले वर्ष अपनी माँ या किसी ब्राह्मणी को दें। बाद के चार वर्षों में सुहाग पिटारी अपनी सास या ब्राह्मणी को दें।
शाम को बिना नमक का भोजन करें। अगले दिन व्रत का पारण करें।