छोटी दीपावाली (Choti Diwali)

छोटी दीपावाली कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी को यानी दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाता है। इसे "रूप चतुर्दशी" और "नरक चतुर्दशी" के नाम से भी जाना जाता है। इसमें भी दीप दान किये जाते हैं । दरवाजे पर दीपक लगाये जाते हैं । धूमधाम से घर के सभी सदस्यों के साथ त्यौहार मनाया जाता हैं ।

छोटी दीपावाली / नरक चतुर्दशी पूजा विधि ( Choti Diwali / Pujan Vidhi)

छोटी दीपावाली के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान का महत्व होता हैं | इस दिन स्नान करते वक्त तिल एवं तेल से नहाया जाता हैं इसके साथ नहाने के बाद सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित करते हैं | इस दिन प्रभात के समय नरक के भय को दूर करने के लिए स्नान अवश्य किया जाता है। स्नान के दौरान अपामार्ग (चिचड़ा)/ अकबक के पत्ते को सिर के ऊपर निम्न मंत्र पढ़ते हुए घुमाते हैं।
हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणं पुन: पुन:।
आपदं किल्बिषं चापि ममापहर सवर्श:।
अपामार्ग नमस्तेस्तु शरीरं मम शोधय॥

 

मन्त्र अर्थ - हे अपामार्ग ! मैं काँटों और पत्तों सहित तुम्हें अपने मस्तक पर बार-बार घुमा रहा हूँ। तुम मेरे पाप हर लो।
स्नान के पश्चात् 'यम' के चौदह नामों को तीन-तीन बार उच्चारण करके तर्पण (जल-दान) किया जाता है। । साथ ही 'श्री भीष्म' को भी तीन अञ्जलियाँ जल-दान देकर तर्पण करते हैं । । जल-अञ्जलि हेतु यमराज के निम्नलिखित १४ नामों का तीन बार उच्चारण करना चाहिये-
ॐ यमाय नम:
ॐ धर्मराजाय नम:
ॐ मृत्यवे नम:
ॐ अंतकाय नम:
ॐ वैवस्वताय नम:
ॐ कालाय नम:
ॐ सर्वभुतक्षयाय नम:
ॐ औढुम्बराय नम:
ॐ दध्नाय नम:
ॐ नीलाय नम:
ॐ परमेष्ठिने नम:
ॐ वृकोदराय नम:
ॐ चित्राय नम:
ॐ चित्रगुप्ताय नम:
इस दिन शाम को घर से बाहर नरक निवृत्ति के लिये सर्वप्रथम यम-देवता के लिए धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष-स्वरूप चार बत्तियों का दीपक जलाया जाता है। इसके बाद गो-शाला, देव-वृक्षों के नीचे, रसोई-घर, स्नानागार आदि में दीप जलाये जाते हैं एवं यमराज की पूजा भी की जाती है। 'दीप-दान' के बाद नित्य का पूजन करे।

छोटी दीपावाली / नरक चतुर्दशी की कथा | Choti Diwali / Narak Chaturdashi Story

नरकासुर का वध:-

राक्षस नरकासुर ने भगवान इंद्र को हराकर , माता अदिति के कान की बालियां छीन ली थी और प्रज्ञज्योतिशपुर (नेपाल के दक्षिण में एक प्रांत) में शासन करने लगा। नरकासुर ने देवताओं और संतों की सोलह हजार कन्यायों को भी अपने कैद में कर लिया था। तब भगवान कृष्णा ने नरकासुर का वध किया और सभी कन्यायों को मुक्त करवाया तथा माता अदिति की बालियां भी उन्हें ( माता अदिति ) वापस सौंपी। इन कन्याओं ने भगवान कृष्णा को हीं अपना पति मान लिया था। अत: भगवान श्री कृष्णा ने उन सभी सोलह हजार कन्याओं से शादी कर ली। भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि को हीं नरकासुर का वध किया था। इसलिए छोटी दीपावली को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। नरकासुर का वध और 16 हजार कन्याओं के बंधन मुक्त होने के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा शुरू हुई। नरक चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान करके यमराज की पूजा और संध्या के समय दीप दान करने से नर्क के यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। इस कारण भी नरक चतु्र्दशी के दिन दीपदान और पूजा का विधान है। इस दिन प्रातः काल स्नान करके यम तर्पण एवं शाम के समय दीप दान का बड़ा महत्व है।

हनुमान जयंती :-

मान्यता हैं कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन हीं हनुमान जी ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था । इस दिन दुखों एवं कष्टों से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की पूजा की जाती हैं एवं लोग हनुमान चालीसा, हनुमानअष्टक आदि का पाठ करते हैं । कहते हैं कि आज के दिन हनुमान जयंती होती हैं । इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता हैं | ( इसलिए भारत में दो बार हनुमान जयंती मनाया जाता हैं । एक बार चैत्र की पूर्णिमा और दूसरी बार कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन|)

नरक चतुर्दशी कथा :-

इसे नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता हैं इसकी एक पौराणिक कथा हैं जो इस प्रकार हैं :- रंति देव नाक के एक प्रतापी राजा थे । स्वभाव से बहुत ही शांत एवं पुण्य आत्मा, इन्होने कभी भी गलती से भी किसी का अहित नहीं किया । जब इनकी मृत्यु का समय आया तो यम दूत इनके पास आये और इन्हें पता चला कि इन्हें मोक्ष नहीं बल्कि नरक मिला हैं । तब उन्होंने यम दूत से पूछा कि जब मैंने कोई पाप नहीं किया तो मुझे नरक क्यूँ भोगना पड़ रहा हैं । तब यमदूतों ने उन्हें बताया कि एक बार अज्ञानवश आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा चला गया था । उसी के कारण आपका नरक योग हैं । तब राजा रंति ने हाथ जोड़कर यमराज से कुछ समय देने को कहा ताकि वे अपनी गलती सुधार सके । उनके अच्छे आचरण के कारण यमराज ने उन्हें यह मौका दिया । तब राजा रंति ने अपने गुरु से सारी बात कही और उपाय बताने का आग्रह किया । तब गुरु ने उन्हें सलाह दी कि वे हजार ब्राह्मणों को भोज कराये और उनसे क्षमा मांगे । रंति देव ने यही किया । उनके कार्य से सभी ब्राह्मण प्रसन्न हुए और उनके आशीर्वाद के फल से रंति देव को मोक्ष मिला । वह दिन कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस का था इसलिए इस दिन को नरक निवारण चतुर्दशी कहा जाता हैं |

रूप चतुर्दशी :-

हिरण्यगर्भ नामक एक राजा थे । उन्होंने राज पाठ छोड़कर तप में अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय किया । उन्होंने कई वर्षो तक तपस्या की लेकिन उनके शरीर पर कीड़े लग गए । उनका शरीर जैसे सड़ गया । हिरण्यगर्भ को इस बात से बहुत कष्ट हुआ और उन्होंने नारद मुनि से अपनी व्यथा कही । तब नारद मुनि ने उनसे कहा कि आप योग साधना के दौरान शरीर की स्थिति सही नहीं रखते इसलिए ऐसा परिणाम सामने आया । तब हिरण्यगर्भ ने इसका निवारण पूछा । तो नारद मुनि ने उनसे कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगा कर सूर्योदय से पूर्व स्नान करे साथ ही रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा कर उनकी आरती करे इससे आपको पुन : अपना सौन्दर्य प्राप्त होगा । उन्होने वही किया और अपने शरीर को पूर्व रूप में पा लिया । तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता हैं । इस के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान का बहुत महत्व हैं । स्नान के बाद सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित करते हैं और श्री कृष्णा की उपासना का भी प्रचलन है।