Benefit of Mangala Gauri Path | मंगला गौरी पाठ के लाभ

शीघ्र विवाह के लिये ।
दाम्पत्य जीवन में पारस्परिक प्रेम बनाये रखने के लिये।
जिनकी कुण्डली में मांगलिक दोष हो।
शनि ग्रह के निवारण हेतु।
संतान सुख के लिये।
सौभाग्य के लिये।
मकान या वाहन खरीदने और बेचने के लिये।

आरती श्री गणपति जी की

शंकर सुवन भवानी नंदन। मेरा बार –बार प्रणाम।
करो मेरे गणपति जी सिद्ध काम॥
ऋद्धि सिद्धि अंग विराजे। विघ्न हरण धन धाम॥
करो मेरे गणपति जी सिद्ध काम॥
विद्या बुद्धि भक्ति दीजो। दीजो मन विश्राम॥
करो मेरे गणपति जी सिद्ध काम॥
मांगत हैं हम हाथ जोड़कर। दर्शन दो घनश्याम॥
करो मेरे गणपति जी सिद्ध काम॥
॥इति आरती गणपति जी की॥

मंगला गौरी पाठ प्रारम्भ

कलि-काल कराल में-जनहित उतरि आय।
पाप नशावै सुख करै- मंगला गौरी मांय॥
सात समुद्र भू भाग में- आठवीं वैतरणी धार।
भक्तों की नाव लगावती-मंगला गौरी पार॥
सतयुग में उत्पन्न हुई- त्रेता मर्यादा पाली।
द्वापर योग माया बनी- कलियुग मंगला काली॥
मंगला गौरी ममता मई-माया मोह विस्तारी।
धरणी गगन पाताल में- मंगला मां प्रचारी॥
स्वर व्यंजन बिन्दु मात्रा-शब्द भेद प्रमाण।
कंठ तालु जिह्वा अधर-मंगला गौरी ज्ञान॥
स्थावर जंगम चर अचर- सृष्टि की जड़ मूल।
विश्व का संचालनकरै-मंगला गौरी अनुकूल॥
दूध दही भात घृत मधु-मोदक मोहन भोग।
प्रेम सहित अर्पण करै-मंगला गौरी योग॥
स्वर्ण सिंहासन राजती –चंवर व्यंजन सेवकाई।
अष्ट लड़ी सिर मुकुट धर-मंगला गौरी हर्षाई॥

चौपाई पाठ

जय जय श्री मंगला गौरी।
तुम्हें मनावैं चन्द्रमा सौरी॥
भूमि सूत मंगल की पुत्री।
गगन फोड़कर स्वर्ग से उतरी॥
कैलाश हिमालय घूमती फिरती।
गुण सुगन्ध औषधि में भरती॥
पाताल लोक की बनी निवासी।
नाग नागनी दास अरु दासी॥
मणी कणी नग रत्न सुहासी।
हीरे पन्ने चमक प्रकाशी॥
कानन कुण्डल सजे सुख राशी।
लाल लालड़ी लसैं बारां मासी॥
धर्म कर्म की तन पहरी चोली।
चंद्र किरण सी मस्तक रोली॥
लता बेल फल फूल भरी झोली।
नक्षत्र तारे बेणी की मौली।
सुहाग भाग की नाथ संजोली।
गंग नीर में चुनड़ी धौली॥
गंगा यमुना गले की माला।
सात समुंदर झलकत भाला॥
बंगाल बिहार घूमकर आई।
हरियाणे में बड़ी सजी सजाई॥
खेत खलियान देखकर आती।
फिर मन्डी में शोभा पाती॥
मंगला गौरी चढ़ी चित्ते पर।
दया दृष्टि हारे जीते पर॥
स्वर्ण सिंहासन शोभा पावै।
वायु व्यंजन करी चंवर ढ़ुलावै॥
इन्द्र धनुष का शस्त्र धारै।
भक्त हेतु दुष्टों को मारै॥
‘जयन्ती’ बन कर विजय दिलाती।
अड़े काम को स्वयं बनाती॥
‘काली’ बनकर संहार कराती।
दैत्य वंश को खोज मिटाती॥
‘भद्रकाली’ कल्याण कराए।
ऋद्धि सिद्धि घर में आए॥
‘कपाल मोचनी’ ज्ञान बढ़ाए।
मुक्ति मार्ग स्वत: सुझाए॥
‘दुर्गा’ बन कर दुर्ग बसा दे।
भूले भटके को राह दिखा दे॥
‘क्षमा’ याचना भय दोष मिटा दे।
पाप मिटाकर पुण्य बढ़ा दे॥
‘शिवा’ सहारा दुखी दीन का।
भाग जगा दे कर्म हीन का॥
‘धात्री’ बनकर भाग जगाती।
मंगला गौरी मंगल गाती॥
चुनाव विजय मंगला करवावै।
गौरी युद्ध में फतह दिलावै॥
मंगलवार को मंगला गौरी।
पाठ करे जो छोरा छोरी॥
उस पर प्रसन्न मंगला होई।
तुरंत जगा दे किस्मत सोई॥
मंगला पाठ करे छात्र।
परीक्षा पास करै मां आतुर॥
अविवाहित का ब्याह रचावै।
उजड़े घर को पुन: बसावै॥
सुहाग मांग कन्या की भरवावै।
मन अनुकुल पति घर पावै॥
भूखे नर की भूख मिटावै।
दुखिया के दुख आप हटावै॥
परदेश गए को तुरंत बुलावै।
जो मंगला का पाठ करावै ॥
विधि पूर्वक अनुष्ठान कराओ।
दहनी कोख में गर्भ भराओ॥
मंगला गौरी मंगल करणी।
भगत जनों के संकट हरणी॥
मंगल ग्रह को मंगला उतारै।
शनि नजर से गौरी उभारै॥
कृष्ण दत्त ग्रह गणित विचारै
। मंगला गौरी ह्रदय में धारै।

मंगला अष्टक योग
॥दोहा॥

अष्ट भुजा आठों दिशा-रक्षक आयुध आठ।
मंगला गौरी रक्षा करै-जो करै मंगला का पाठ॥
अष्ट दिशा में घूमती –रक्षक आठों याम।
मंगला गौरी रक्षा करै-सुमरों मंगला नाम॥
अष्ट भवन मन्दिर बना- बाजत ताल मृदंग।
मंगला गौरी रक्षा करै-जो सदा करै सत्संग॥
आठ भवन आठों कलश-आठों ध्वजा फहराई।
मंगला गौरी रक्षा करै-शत्रु को शीघ्र भगाई॥
माया मेधा मती मही-स्वाती शिवा संघारी।
मंगला गौरी रक्षा करै-शत्रु संघ बिगाड़ी।
तोमर मूसल गदा घनी-धनुष तीर तलवार।
मंगला गौरी रक्षा करै-जो गावै मंगला चार॥
भारतमाता बन प्रकट हुई-सन सैंतालीस की साल।
मंगला गौरी रक्षा करै-हिन्द का ऊंचा भाल।
मलेच्छ यवन का नाशकर आर्यावर्त महान्।
मंगला गौरी रक्षा करै-कवि वर करत बखान॥
॥इति अष्टक योग॥

अथ: मंगलाष्टक श्लोक पाठ

पूर्व पश्चिम उत्तर यमी-वायव्य नैऋत ईशान।
अग्नि कोण अष्टम दिशा-मंगला गौरी नमो नम:॥
कावेरी कृष्णा गौतमी-सरस्वती यमुना गंग।
गोदावरी अष्ट नर्मदा-मंगला गौरी नमो नम:॥
जांझन ताल मृदंग डफ-वीणा नाद तरंग।
अष्टम वंशी स्वर भरी-मंगला गौरी नमो नम:॥
लाल नील पीत हरित- श्वेत सिन्दूरी सीप।
अष्टम रंग शुभ केशरी-मंगला गौरी नमो नम:॥
कनक ताम्र मूंगा रजत-कांसी अभ्रक लौह।
अष्टम धातु वज्र की-मंगला गौरी नमो नम:॥
अगर तगर चन्दन चरू- गूगल वाण मजीठ।
कपूर छार गन्धाष्टमी-मंगला गौरी नमो नम:॥
चला पांगा दृष्टया-चंचला चपला मीन।
टन टना टन लक्ष्मी-मंगला गौरी नमो नम:॥
चार वेद छ: शास्त्र में बसत अठारह पुराण।
वेद व्यास की लेखनी-मंगला गौरी नमो नम:॥
पढ़ै लिखै कोई जपै सुनै-कथा भजन सत्संग।
कृष्ण कवि की कल्पना-मंगला गौरी नमो नम:॥
एवं मंगला गौर्ये नमो नम
॥इति मंगला गौरी पाठ सम्पूर्णम्॥

आरती मंगला गौरी की
॥दोहा॥

जय जय मंगला गौरी-मैया जय मंगला गौरी।
सात द्वीप नौ खंड में- जय जय कार होरी॥
जग जननी जग माता, जग विस्तार करै।
मैया जग विस्तार करै॥
पालन पोषण करती, फिर निस्तार करै॥१॥
॥जय जय मंगला गौरी...॥
स्वर्ण सिंहासन बैठी, सिंह सवार फिरै।
मैया सिंह सवार फिरै॥
अष्ट भुजा मां गौरी-ले हथियार फिरै॥२॥
॥जय जय मंगला गौरी...॥
रमा राधिका श्यामा, नित नये रूप धरै।
मैया नित नये रूप धरै॥
कभी गरमी कभी सरदी, कभी छाया धूप करै॥३॥
॥जय जय मंगला गौरी...॥
रोग शोक को नाशै, जग के कष्ट हरै।
मैया जग के कष्ट हरै॥
धन यौवन की दाता, तन को पुष्ट करै॥४॥
॥जय जय मंगला गौरी...॥
हम सब दास हैं तेरे, हम पर दया करो।
मैया हम पर दया करो॥
श्रद्धा भक्ति दिजौ, हृदय में ज्ञान भरो॥५॥
॥जय जय मंगला गौरी...॥

॥जानकारी॥

जो बालक मांगलिक हो –शत पाठ करे मन लाए।
गृहस्थ सुख पूरा मिले –मंगली दोष मिट जाए॥
चौथे आठवें बारहवें, सप्तम एक करूर।
सहस्त्र पाठ कराईए, मंगली दोष हो दूर॥
हरियाणे में प्रसिद्ध है-लदाना बाबा ग्राम।
सन तिरासी से शुरु हुआ, गीता पंचाग निर्माण॥
॥बोलो मंगला गौरी माता की जय॥