ashunya shayan vrat - अशून्य शयन व्रत

फल द्वितीया या अशून्यशयन व्रत को श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि से प्रारम्भ करना चाहिये और चार महीने तक प्रत्येक द्वितीया तिथि को व्रत तथा पूजन करना चाहिये अर्थात् श्रावण मास द्वितीया तिथि से लेकर मार्गशीर्ष द्वितीया तिथि तक पति-पत्नी को एक साथ यह व्रत करना चाहिये । इस व्रत के करने से पति-पत्नी में कभी वियोग नहीं होता । स्त्रियां तीन जन्मों तक विधवा नहीं होती। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य श्रीसम्पन्न हो गृहस्थ जीवन के सभी सुखों को भोगता है।

Ashunya Shayan Vrat Puja Vidhi| अशून्य शयन व्रत पूजा विधि:-

फल द्वितीया या अशून्यशयन व्रत को श्रावण कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरु करना चाहिये और मार्गशीर्ष द्वितीया तिथि तक करना चाहिये।यह व्रत इन चार मास के प्रत्येक द्वितीया तिथि को करना चाहिये। दोनों पति-पत्नी साथ में व्रत करें।प्रात:काल उठकर सभी नित्य कर्म कर लें,स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को साफ कर पवित्र कर लें। षोडशोपचार विधि से पूजा लक्ष्मी सहित विष्णु भगवान की शय्या पर पूजन करें। दोनों हाथ जोड़कर इस प्रकार प्रार्थना करें:-

प्रार्थना के बाद सभी पके और मधुर ऋतुफलों का भोग लगायें। उसके बाद अश्वनीकुमारों की पूजा करें। तत्पश्चात् फल द्वितीया या अशून्यशयन व्रत की कथा सुने अथवा सुनाये। उसके बाद श्रीविष्णु जी तथा माता लक्ष्मी की आरती करें।

अशून्यशयन व्रत कथा

विष्णु आरती हिंदी में । vishnu arti in Hindi
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
जो ध्यावे फल पावे, दुख विनसे मन का
स्वामी दुख विनसे मन का
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी
स्वामी तुम अंतर्यामी पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्ता
स्वामी तुम पालन कर्ता मैं मूरख खल कामी , कृपा करो भर्ता ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
दीनबंधु दुखहर्ता, ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी ठाकुर तुम मेरे अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा मैं तेरे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
विषय विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा,
स्वामी पाप हरो देवा, श्रद्धा भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ॥
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ॥
॥ ॐ जय जगदीश हरे ||
॥ इति श्री विष्णु आरती॥

मैया लक्ष्मी आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, तहँ सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
॥ इति श्री लक्ष्मी आरती ॥