दशा माता / दशारानी पहली कथा (Page 9/10)

मित्र के यहाँ से चलकर राजा मुँहबोली बहन के यहाँ गये । उसने जब सुना कि राजा भैया आये, तब उसने पूछा- “ कैसे आये ? ” लोगों ने कहा- “ जैसे राजाओं को आना चाहिये, वैसे आये , और कैसे आये ? ” उसने कहा- “ उनको सीधा मेरे महल में आने दो ।” जब राजा नल का हाथी बहन के महल की तरफ बढ़ा ,तब रानी बोली- “ आप बहन के घर जाइये,मैं तो उसी कुम्हार के घर जाकर ठहरूँगी , जिसके यहाँ पहले ठहरी थी ।” राजा ने कहा- “ जिसके कारण इतने दु:ख उठाये , तुम उसी से फिर झगड़ा मोल लेती हो । यह तो अच्छा नहीं करती ।” परंतु रानी नहीं मानी । वह कुम्हार के यहाँ ठहरी । राजा बहन के घर चले गये । शाम को ननद, भावज के लिये थाल लगाकर चली । उसने भावज के सामने जाकर थाल रख दिया । तब भावज (रानी) सोने-चाँदी के गहने उतार-उतारकर रखने लगी और कहने लगी – “खाओ रे ! मेरे सोने- रूपे के गहनों ! खाओ । हम नंगे- भूखे क्या खायेंगे ।” यह देखकर ननद बोली-“ यह उपालम्भ और बोली- ठिठोली किस पर कसती हो ? मुझसे तो जो कुछ हो सका ,सो तब लाई थी , वही अब भी लाई हूँ । विश्वास न हो, तो चाक के नीचे अब भी देख लो ।” जब रानी ने चाक उठाकर देखा तो उसके नीचे मनि-माणिकों का ढ़ेर लगा था । रानी देखकर सन्न रह गई । बोली- “ननद ! तुम्हारा कोई दोष नहीं है ; यह सब मेरी कुदशा के कारण था ।” रानी ने ननद का लाया हुआ सब सामान वापस कर दिया । कुछ अपनी तरफ से भी दिया ; किंतु पूजा का न्यौता न दिया ।
वहाँ से चलकर वे दोनों सुरा गाय के पास आये, तो उसने सब सेना-समेत राजा को यथेच्छ दूध पिलाया । राजा ने गऊ के चरण छूकर कहा- “गौ माता ! बढ़ती रहो , सदा सुखी रहो ।” वहाँ से आगे चले ,तब तरबूजो वाला कहार मिला । उसने सब फौज को अच्छे-अच्छे तरबूज खिलाये । राजा-रानी ने उसे भी आशीर्वाद दिया- “बढ़ते रहो, सुखी रहो । ” आगे चलकर राजा नदी के तट पर पहुँचे, वहीं पर राजा ने अपना पड़ाव डाला। जब भोजन तैयार हो गया , तब राजा भोजन करने बैठे । तब नदी में से उछलकर गिरी हुई भुनी-भुनाई मछलियाँ आप से आप थाल में आ पड़ी । वे रोटियाँ जो ईंटें हो गयी थी, फिर से रोटियां हो गई । तब रानी से राजा ने पूछा- “ यह सब क्या कौतुक है ? कुछ समझ में नहीं आता ।” रानी बोली- “ये वही मछलियाँ और रोटियाँ हैं, जो उस दिन अपने काम न आई थी । मैं यदि आपसे कहती कि मछलियाँ जल में उछल गई और रोटियाँ ईंटें हो गई तो आप न मानते । इसी कारण झूठा बहाना करना पड़ा था। ” वहाँ से आगे चले, तो किसान लोग बोझ बाँधे होरहा लिये रास्ते में खड़े थे । राजा की सब फौज ने भूनकर बालें खाई । दो-एक राजा ने भी खाई । और फिर आगे चले, तो वहाँ बेर के पेड़ों से बेर टपकने लगे। राजा की सेना ने खूब बेर खाये ।