दशा माता / दशारानी सातवीं कथा प्रारम्भ (Page 1/4)

एक बुढ़िया ब्राह्मणी थी। वह बहुत गरीब थी । उसका एक लड़का भी था। एक दिन वह लड़के से बोली – “बेटा कुछ उद्यम करो, जिस में चार पैसे की आय हो और अपना निर्वाह हो । अब मेरे तो हाथ पैर नहीं चलते । ” तब लड़का गाँव वालों के गोरू (पशु) चराने लगा। एक दिन लड़का पशुओं को पानी पिलाने नदी के घाट पर गया। वहाँ स्त्रियाँ स्नान करके दशारानी के गण्डे ले रही थी । उनका एक गण्डा अधिक था । उनमें से एक ने कहा -“ पूछो तो यह लड़का किसका है ? यदि किसी उच्च वर्ण का हो , तो इसी को गण्डा दे दो ।” एक स्त्री ने लड़के से पूछा – “ तुम्हारे घर में कौन है ? ” लड़के ने जवाब दिया- “ मेरी एक बुढ़िया माता है ।” फिर स्त्री ने पूछा – “तुम किस वर्ण के हो ? ” वह बोला- “हूँ तो ब्राह्मण, पर कोई काम न मिलने के कारण गाँववालों के गोरू चराता हूँ ।”
यह सुनकर स्त्रियों ने लड़के को एक गण्डा देकर कहा – “तुम इसे घर ले जाकर अपनी माता को देना और कहना कि इसका पूजन और व्रत करे । हम लोग तुमको सीधा और पूजा की सामग्री देते है , वह भी ले जाकर अपनी माता को दे देना ।” लड़के ने गण्डा ले लिया। फिर सब स्त्रियों ने उसे सीधा दिया । लड़का उस सामान की गठरी बाँधकर घर आया । उसने दरवाज से ही माता को पुकार कर कहा- “ गठरी उतार ले, बोझों मरा जा रहा हूँ । ” माता दौड़ी आई । गठरी में सीधा का सामान देखकर बहुत खुश हुई ।उसने लड़के से पूछा – “यह सब कहाँ से लाये हो ? ” तब लड़के ने बुढ़िया से सब हाल कह कर दशारानी का गण्डा भी उसे दे दिया।