दशा माता / दशारानी पहली कथा (Page 8/10)
परंतु यहाँ पूजा की सामग्री कहाँ से आयेगी ? कैसे नियम-धर्म निभेगा ? ” रानी ने कहा-“ वही दशारानी सब कुछ करेंगी । मैं तो उन्हीं का नाम लेकर गंडा लेती हूँ , फिर जो होगा देखा जायेगा ।” तब नौ तार राजा की पाग के और एक तार अपने आँचल का लेकर रानी ने गण्डा बनाया और उसी समय से व्रत ठान लिया। थोड़ी देर में राजा खुद घोड़ी का बछेड़ा देखने के लिये उसी रास्ते से निकला । राजा ने नल-दमयन्ती को कोठरी में बंद देखकर पूछ – “ ये लोग कौन हैं ? और किस अपराध के कारण यहाँ बंद हैं ? ” पहरेदारों ने कहा- “ये लोग भिक्षा माँगने आये थे । आप को आशीर्वाद के बदले गालियाँ देते थे। इसी कारण दानाध्यक्ष ने इन लोगों को कैद करा दिया था ।” राजा ने कहा – “ यह तो इनका कोई अपराध नहीं है । इनको मनोनीत भिक्षा न मिली होगी, इसी से गालियाँ देते होंगे । इनको संतुष्ट करना चाहिये या कैद कर देना चाहिये । इनको अभी कोठरी से बाहर करो ।” राजा की आज्ञानुसार उसी समय नल-दमयंती दोनों को कोठरी से बाहर निकाला गया । राजा उनके पाँव में पद्म और माथे में चन्द्रमा का चिन्ह देखकर पहचान गये कि यह तो राजा नल और रानी दमयंती हैं । तब उसने विनीत भाव से क्षमा-प्रार्थना की और उनको हाथी पर बिठाकर महल मे लिवा ले गये ।
कुछ दिनों तक उस राजा का आतिथ्य- सत्कार स्वीकार करके राजा नल पूरे राजसी ठाठ से अपनी राजधानी की ओर चले । पहले वे मित्र के यहाँ गये । मित्र ने राजा नल के आने की खबर सुनकर पूछा “ मित्र आये तो कैसे आये ? ” लोगों ने कहा- “ अबकी बार तो बड़े ठाठ-बाट से , हाथी-घोड़े से ,डंका-निशान से, पालकी- डोली से और फौज भी साथ लेकर आये हैं ।” मित्र ने कहा- “अच्छी बात है , आने दो । मेरे तो जैसे तब थे, वैसे अब हैं । आखिर मित्र तो हैं !” राजा-रानी दोनों मित्र के महल में गये । उसने सादर उनका स्वागत करके उसी स्थान में फिर से उनको ठहराया , जहाँ उन्हें पहले ठहराया था । आधी रात के समय राजा सो रहे थे, रानी पैर दबा रही थी । तब उसने देखा कि मोर का चित्र जो हार निगल गया थी, उसे उगल रहा है और खांडा ग्वार की पाटी से बाहर निकल रहा है । रानी ने राजा को जगाकर दिखाया । राजा ने अपने मित्र को बुलाकर यह दृश्य दिखाया । तब मित्र बोला- “मैंने न तब तुमको चोरी लगाई थी, न अब लगाता हूँ । यह सब कुदशा के कारण था । आप निश्चय रखिये मेरे मन में कोई मैल नहीं है। ”