दशा माता / दशारानी पहली कथा प्रारम्भ (Page 1/10)
एक घर मे कोई सास-बहू थी । सास का लड़का – बहू का पति परदेश गया हुआ था । एक दिन सास ने बहू से कहा- “जा गाँव में से आग ला और भोजन बनाकर तैयार कर ले ।” बहू गाँव में आग लेने गई , तो किसी ने उसको आग न दी, और कहा- “जब तक दशारानी की पूजा न हो जायगी, आग न मिलेगी। ” बहू बेचारी खाली हाथ घर आई । सास ने पूछा- “क्यों ? आग नहीं लाई ? ” तब बहू ने कण्डा सास के सामने पटक दिया और कहा- “गाँव भर में पूजन-व्रत सब कुछ होता है; तुमको इसकी खबर नहीं होती । आज गाँव भर में दशारानी की पूजा है, कोई आग- बाग तो दे क्यों, किसी ने यह भी नहीं पूछा कि कौन है ? कहाँ से आई है ? ” सास बोली –“अच्छा, शाम को देखूँगी, कैसी पूजा है , क्या बात है ।”
शाम को सास आग लेने के लिये गाँव में गई, तब स्त्रियोंने उसे स्वागत-पूर्वक बिठाया और कहा- “सवेरे तेरी बहू आई थी; परंतु हमारे यहाँ पूजा नहीं हुई थी, इसी कारण आग नहीं दे सकी, क्षमा करना ।” सास ने आग के अतिरिक्त जिससे जो चीज चाही , सभी ने खुशी से दी।
सास आग लेकर अपने घर के दरवाजे तक पहुँची थी कि एक व्यक्ति बछवा लिये आया और उसके पीछे ब्याई कलोरी गाय आती दिखाई दी उस स्त्री ने उससे पूछा- “क्या यह गाय पहलौठी ब्याई है ? ” आदमी ने कहा- “हाँ ” उसने फिर पूछा – “ बछवा है या बछिया ? ” आदमी ने जवाब दिया –“बछवा है ।” सास ने घर में जाकर बहू से कहा- “आओ, हम-तुम भी दशा रानी के गंडे लेवे और व्रत रहें । ” दोनों ने गंडे लिये । सवेरे से व्रत आरम्भ किया । नौ व्रत पूरे हो चुकने के बाद दसवें दिन गंडे की पूजा होनी थी । सास-बहू दोनों ने मिलकर गोल-गोले बेले हुये दस – दस अर्थात् बीस फरे बनाये । इक्कीसवाँ एक बड़ा फरा गाय को दिया । पूजन के बाद सास- बहू दोनों पारण करने बैठी ।