दशा माता / दशारानी दसवी कथा (Page 1/1)
दसवे दिन विधि विधान से पूजा सम्पन्न करें। दसवें दिन सुबह उठकर नित्य कर्म कर सर से स्नान करें। घर को स्वच्छ कर लें । पूजा के स्थान पर चौक (अल्पना) बनायें। चौक पर एक लकड़ी का पटरा रखें । एक नोक वाले पान पर चंदन से दशारानी का चित्र बनायें। इस पान को पटरे पर रखें । गंडे को दूध मेंडुबाकर पान के ऊपर रख दें । हल्दी, अक्षत से गंडे की पूजा करें। घी,गुड़, बताशा का भोग लगायें। उसके बाद हवन करें। हवन के बाद पहली कथा फिर से कहें । कथा कहनेके बाद पूजन की सामग्री को गीली मित्टी के पिंड में रखकर मौन होकर व्रत रखनेवाली मिलायें । उसके बाद किसी जलाशय या तालाब में जाकर सिराये (जल में प्रवाहित करें) । उसके बाद घर आकर पारण करे। पारण के लिये जितना अन्न लें सब खा लें, थाली में कुछ भी नहीं बचना चाहिये । पारण के वक्त मौन रहें ।थाली धोकर पी लें। जिस दिन दशा रानी का व्रत हो, उस दिन जब तक पूजा न हो जाय, किसी को कोई वस्तु, यहाँ तक कि आग भी, नहीं दी जाती । पूजा के पहले उस दिन किसी का स्वागत भी नहीं किया जाता ।