दशा माता / दशारानी दूसरी कथा प्रारम्भ (Page 1/3)
एक राजा थे । उनकी दो रानियाँ थी । जेठी रानी को कोई सन्तान न थी ; किन्तु छोटी रानी के एक पुत्र था । राजा छोटी रानी और उसके पुत्र को बहुत प्यार करते थे । यह देखकर बड़ी रानी को डाह और ईर्ष्या होती थी । वह सौतिया डाह के कारण नाबालिग राजकुमार के प्राणों की प्यासी हो गई थी। एक दिन राजकुमार खेलता हुआ अपनी विमाता के पास चला गया । विमाता ने उसके गले में एक काला साँप डाल दिया । राजकुमार की माता दशारानी का व्रत करती थी । वह लड़का दशारानी का दिया हुआ था । अत: दशारानी की कृपा से लड़के के गले में पड़ा हुआ साँप आप ही सरक कर भाग गया
दूसरे दिन राजकुमार के विमाता ने उसे विष के लड्डू खाने को दिये । वह लड्डू लेकर ज्यों ही खाने लगा, त्यों ही दशारानी ने दासी के वेष में प्रकट होकर राजकुमार से लड्डू छीन लिये । विष देनेपर भी जब राजकुमार नहीं मरा, तब जेठी रानी को बड़ी चिंता हुई कि किस प्रकारसे उसे मारा जाय । तीसरे दिन जब राजकुमार उसके आँगन में खेलने गया तो रानी ने उसे पकड़ कर गहरे कुँए में डाल दिया । कुआँ जेठी रानी के आँगन में था, इसलिए किसी को कुछ पता नहीं चला ।