दशा माता / दशारानी चौथी कथा प्रारम्भ (Page 1/4)
एक राजा था । उसकी रानी बड़ी कोमलांगी और सुकुमार थी । वह फूलों की सेज पर सोया करती थी। एक दिन फूलों की सेज में एक कच्ची कली बिछ गई । उस रात्रि को रानी को नींद न आई । राजा ने पूछा- “ प्रिये ! आज तुमको नींद क्यों नहीं आती ? क्या कोई पीड़ा है ? ” तब रानी बोली- “आज सेज पर एक कच्ची कली रह गई है , वह मेरे शरीर मे चुभ रही है । इसी से नींद नहीं आती ।”
उसी समय ज्योती-स्वरूप (दीपक) हँसा । यह देखकर राजा ने हाथ जोड़कर ज्योति-स्वरूप से प्रार्थना की –“स्वामी ! आप क्यों हँसे ? कृपाकर इसका भेद बताइये ।” ज्योति-स्वरूप ने पुन: हँसकर उत्तर दिया- “ अभी तो रानी कच्ची कली के कारण उसकती-पुसकती है , जब सिर पर बोझा ढ़ोवेगी तब क्या होगा ? ” राजा ने पूछा- “क्या मेरे देखते, मेरे जीते-जी ऐसा होना सम्भव है ? ” तब दीपक ने दृढ़ता पूर्वक उत्तर दिया-“ हाँ, सम्भव है; तुम्हारे जीते-जी सम्भव है ।”
ज्योति-स्वरूप की ऐसी भविष्यवाणी सुनकर राजा ने अपने मन में कहा कि देववाणी असत्य नहीं हो सकती । रानी को अवश्य बोझा ढ़ोना पड़ेगा । किंतु यह हो सकता है कि यदि मैं इसको जीते जी समुद्र में बहा दूँ, तो सम्भव है कि यह बोझा ढ़ोने से बच जाये । क्योंकि जब यह समुद्र में डूब जायेगी , तो बोझा कौन ढोयेगा ।
राजा ने उसी वक्त रानी से कहा- “चलो, हम तुमको नैहर भेज आवे । कुछ दिन तुम वहीं रहना । ” रानी ने कहा- “मेरे नैहर में तो कोई भी नहीं है, वहाँ किसके यहाँ रहूँगी ? ” राजा ने जवाब दिया-“तुमको मालूम नहीं है, तुम्हारे सम्बंधी बहुत अच्छी दशा में है । मैं उन्हीं के पास तुमको भेज देता हूँ ।” रानी नैहर जाने को तैयार हो गई । उसने राजा की आज्ञानुसार बहुमूल्य आभूषणों से अपने को सँवारकर तैयार किया । तब राजा ने उसे सन्दूक में बिठाकर नदी में बहवा दिया।