दशा माता / दशारानी तीसरी कथा प्रारम्भ (Page 1/6)
वैशाली नाम के एक गाँव में एक साहूकार रहता था। उसके पाँच लड़के और एक लड़की थी। उसके सभी लड़के और लड़की की शादी हो चुकी थी । लड़की का अभी गौना नहीं हुआ था। इसलिये वह साहूकार के घर अपने मायके में ही रह रही थी। एक दिन साहूकारिन ने दशारानी के गंडे लिये साथ में उसकी बहुओं ने भी गंडे लिये । उसी समय बहू ने सास से पूछा- “सासु माँ ! क्या ननदजी का गंडा भी लिया जायेगा ? ” सास ने कहा- “ अवश्य लिया जायेगा । उसे भी शुभ कार्य करना चाहिये ।” तब बहू ने कहा- “सासु माँ ! ननद जी की तो विदाई होने वाली है । यदि व्रत के पहले विदा हो गई तो ? ” सास ने कहा- “इसमें क्या है । मैं पूजा का सब सामान उसके साथ भिजवा दूँगी । वह अपने ससुराल में जाकर पूजा कर लेगी ।”
साहूकार की लड़की ने भी दशारानी के गंडे ले लिये ; परंतु पूजा के पहले हीं उसकी विदाई का मुहुर्त आ गया। साहूकारिन ने अपनी लड़की की विदाई धूम-धाम से की और विदाई के सामान के साथ लड़की के पालकी में दशारानी के पूजन की सामग्री भी रखवा दी । जब लड़की अपने ससुराल पहुँची , तब घर के आँगन में गलीचा बिछाया गया और उस पर लड़की को ससुराल वालों ने बिठा दिया। सभी नाते-रिश्तेदार, पड़ोसी नई बहू को देखनेके लिये आ गये। सभी ने नई बहू की सुंदरता की तारीफ की । उन्हीं देखने वालों में से किसी की नजर नई बहू के गले में पड़ी गंडे पर जा पड़ी । वह बोली- “नई बहू की माँ बड़ी टोटकाईन (टोटका करनेवाली) है । इतना जेवर होते हुये भी गले में दो ताग सूत के पहना कर भेजा है ; यह बात समझ में नहीं आई। ” जैसे ही एक ने बात शुरु की तो दूसरे की भी नजर गंडे पर पड़ी । सभी स्त्रियों ने गंडे के बारे में कुछ –न-कुछ बातें कहीं ।