दशा माता / दशारानी नवीं कथा (Page 1/1)
एक वृक्ष पर दो पक्षी (नर और मादा) रहते थे। मादा पक्षी के बच्चे नहीं होते थे । जब वह चार चिड़ियों में मिलकर बैठती, तो प्राय: अन्य पक्षी उसको बंध्या कहकर उससे घृणा करती थी । इससे चिड़िया अपने चित्त में अत्यन्त दु:खी रहती थी । वह चिड़ियों के समाज में बहुत कम मिलती-जुलती थी। एक दिन वह पने स्थिति पर विचार करती हुई अकेली एक नदी में पानी पीने गई । वहाँ स्त्रियाँ दशारानी के गंडे ले रही थी । उनका एक गंडा अधिक था । उन्होंने आपस में कहा कि यहाँ कोई स्त्री या मनुष्य तो है नहीं, जिस को यह गंडा दे देते; चलो इस चिड़िया के गले में हीं गंडा बाँध देते है । यह नित्य इसी जगह आकर कथा सुन लिया करेगी । इसको पूजन की विधि बतला दी जायेगी तो पूजन के दिन यह पूजन भी कर लेगी। तदनुसार उन्होंने चिड़िया के गले में गंडा बाँधकर उसे समझा दिया कि नौ दित तक बराबर तू इसी जगह आकर कथा सुन लिया कर । दसवें दिन इक्कीस गेहूँ लाकर एक गेहूँ दशारानी के नाम का नदी में डाल देना। बाकी बीस गेहूँ तुम खुद चुन लेना ।
चिड़िया ने नौ दिन तक प्रेम-पूर्वक कथा-कहानी सुनी । दसवें दिन स्त्रियों की बताई विधि के अनुसार गंडा पानी में डालकर पारण किया। कुछ दिनों के बाद उस चिड़िया के बहुत से बच्चे पैदा हुए। अन्य चिड़ियोंको आश्चर्य हुआ और वे बोलीं – “इसके तो बच्चे होते ही नहीं थे यह कैसे हुए ? ” वह बोली- “जब मेरे बच्चे नहीं थे, तब तो तुम लोग मुझको बंध्या कहकर दुत्कारती थीं, अब जो दशारानी ने मुझको दिये , तो तुम कोसती हो । ” चिड़ियों ने उससे पूछा तो उसने गंडा लेने का हाल क्रमश: कह सुनाया और सब को पूजा की विधि भी बतला दी। तब जंगल की सब चिड़ियाँ दशारानी का व्रत करने लगी ।
दसवें दिन गंडे की पूजा के बाद पहले दिन ही की कथा कही जाती है।
॥ बोला दशारानी माता की जय ॥