दशा माता / दशारानी आठवीं कथा प्रारम्भ (Page 1/4)
एक राजा की दो रानियाँ थी। राजा को छोटी रानी बहुत प्यारी थी और उसका नाम लक्ष्मी देवी था। इसी कारण से राजा की बड़ी रानी जो की पटरानी थी, उसे सभी कुललक्ष्मी कहा करते थे।
एक दिन लक्ष्मी रानी काठ की पाटी ले, मलिन वस्त्र पहन कर कोप-भवन में जा लेटी । राजा ने उसकी हर तरह से सेवा कि उसका मनौवल किया और पूछा- “तुम क्या चाहती हो ? जिसे कहो उसे देश –निकाला दे दूँ, जिसे कहो उसे यमपुरी पहुँचा दूँ और जिसे कहो रंक से राजा बना दूँ ; पर ऐसे कोप-भवन में ना रहो।” तब रानी ने राजा से तीन बार प्रतिज्ञा करवा ली और कहा- “रानी कुललक्ष्मी को देश-निकाला दे दो । ”
राजा की प्यारी न होते हुए भी कुललक्ष्मी रानी पटरानी थी । लोक-लज्जा के कारण उसे सहसा निकाल सकने से लाचार होकर राजा ने एक युक्ति निकाली । उसने रानी से कहा- “चलो, हम तुमको नैहर पहुँचा आवें । उधर तुम बहुत दिनों से नहीं गई हो ।” रानी ने उत्तर दिया – “मेरे नैहर में तो कोई भी ऐसा नहीं है , जिसके यहाँ मैं जाऊँ ? ” तब राजा ने समझाया – “तुमको मालूम नहीं है ; तुम्हारा नैहर आबाद है , यह बात हम जानते हैं ।” रानी ने प्रसन्न होते हुए कहा- “यदि आप जानते हैं , तो इससे भला क्या होगा । मैं जाने को तैयार हूँ ।” राजा ने रानी को एक पीनस (डोली) में सवार कराया । आप घोड़े पर सवार होकर साथ चले। एक सघन वन में पहुँचकर राजा ने पीनस रखवा दी और कहारों को वहाँ से हटा दिया। उसके बाद रानी के पीनस के पास जाकर कहा- “ तुम जरा ठहरो , मैं अगले गाँव से तुम्हारे लिये कुछ खाने को ला दूँ ।”