दशा माता / दशारानी पाँचवी कथा प्रारम्भ (Page 1/2)
किसी गाँव में एक सास-बहू रहती थी । वे दोनों पूजा –पाठ नहीं करती थी ।एक दिन सबेरसास ने बहू से कहा- “जाओ, किसी के घर से आग ले आओ और भोजन बनाओ । बड़ी भूख लगी है।” बहू हाथ में कंडे लेकर गाँव में चली,आग माँगने। उस दिन गाँव में घर- घर दशारानी की पूजा थी, इसी कारण किसी ने उसको आग नहीं दी । औरतों ने व्यंग पूर्वक उससे कहा-“ तुम सास-बहू भली हो। तुम्हारे घर न पूजा,न धर्म-कर्म। बड़े फजर ,चूल्हे पर नजर सवेरा हुआ नहीं, कि आग लेने आ गई । आज पूजा हुये बिना कोई आग नहीं देनेवाला। ” तब बहू शर्मिंदा और क्रोधित होती हुई घर लौट आई । उसने सास से कहा- “ सुबह-सवेरे कोई आग नहीं देता, जब देगा तो ले आऊँगी।”
शाम होने पर वह पड़ोसन के पास जाकर बोली -‘ मेरी सास तो दशामाता का डोरा नहीं लेती | परन्तु अब की बार जब तुम सब डोरा लेना तो मुझे भी बताना, मैं भी डोरा लूँगी।| मुझे पूजन की विधि भी बता देना । दूसरी बार जब पड़ोसन डोरा लेने लगी तो बहु को भी बताया, बहु ने सास को बिना बताये दशामाता का डोरा ले लिया । नौ दिन वह किसी न किसी बहाने पड़ोसन के घर जाकर कथा सुनती रही। पर दसवे दिन उसे चिंता सताने लगी की अब वह पूजा कैसे करेगी । वह मन ही मन दशामाता का ध्यान धरकर सोचने लगी की आज सास कहीं बाहर चली जाये तो वह शांति पूर्वक पूजा कर ले।