दशा माता / दशारानी छठीं कथा प्रारम्भ (Page 1/6)
चन्दनपुर नाम का एक गाँव था। उस गाँव में देवरानी- जेठानी रहती थीं । देवरानी का नाम आशा और जेठानी का नाम निशा था। उनके कोई सन्तान न थी। वे दोनों मेहनत-मजदूरी कर अपना पेट पालती थी। वे दोनों कोई पूजा-पाठ, धर्म-कर्म नहीं किया करती थी। एक दिन दोनों सुबह उठकर गाँव में आग लेने गई, परंतु किसी ने भी उन्हें आग नहीं दी। क्योंकि उस दिन पूरे गाँव में दशारानी का पूजन था। दोनों जब घर लौटी तो आपस में बात करने लगी- “आज तो किसी ने आग नहीं दी ; आज पूरे गाँव भर में दशारानी का व्रत है। अब तो भूखे पेट हीं रहना होगा।” तब जेठानी निशा ने कहा- “कोई बात नहीं, आज हम लोग का भी दशारानी का व्रत होगा। शाम को जब आग मिलेगी, तब भोजन बना कर खा लेंगे ।”
शाम को जब जेठानी निशा अपने पड़ोस में आग लेने गई तो उसकी पड़ोसन ने कहा- “आज दशारानी का पूजन था, इसलिये सुबह आग नहीं दी; नियम भंग करके आग नहीं दे सकते थे, इसलिये मुझे माफ करना बहन ।” जेठानी निशा ने पूछा-“ दशारानी के व्रत-पूजन से क्या होता है ?” पड़ोसन ने जवाब दिया- “जिस मनोकामना के साथ गण्डे लिये जाते हैं ; वह मनोकामना पूर्ण होती है। ” तब जेठानी बोली-“ अबकी बार जब गण्डे पड़े तब मुझे भी कहना ; मैं भी गण्डे लूँगी और पूजन करूँगी।”
इसके बाद जेठानी आग ले कर पड़ोसन के घर से निकल ही रही थी कि सामने से उसे गौवें चरकर आती हुई दिखाई दीं । ग्वाले के कंधे पर एक बछवा था और एक गाय पीछे-पीछे उसे चाटती हुई आ रही थी । पड़ोसन ने ग्वाले से पूछा- “भैया ! तुम्हारी गाय पहला ही है या दोहला-तिहला ? ” ग्वाले ने कहा- “पहला ही ब्यान है ।” पुन: पड़ोसन ने पूछा- “बछवा ब्याई है या बछिया ? ” ग्वाले ने जवाबदिया- “बछवा है ।”