दशा माता / दशारानी पहली कथा (Page 4/10)
एक दिन राजा की एक घोड़ी ब्याई । तब राजमहल की स्त्रियाँ बधाई गाने लगी । मुँहबोली बहन ने अपनी दासियों से कहा- “बाहर जाकर देखो तो सही, किस बात की बधाई बज रही है ।” उन्होंने बाहर से आकर कहा- “महाराज की घोड़ी ने अच्छी घड़ी में एक उत्तम बछेड़ा ब्याई है, उसी की बधाई गाई जा रही है। ” उसने पूछ- “पहलौठी ब्याई है या दूसरी-तीसरी बार ? ” उन्होंने जवाब दिया - “ब्याई तो पहले ही है ।” तब उसने रानी के पास जाकर कहा- “ आओ भावज ! हम तुम दोनों दशारानी के गंडे लेवें।” रानी ने पूछा- “ किसके गंडे और कैसे गंडे हैं , सो मुझे समझाओ ।” तब वह बोली- “भाई की एक घोड़ी पहले-पहल ब्याई है । दशारानी के व्रत का नियम भी यही है कि पहले –पहल जब गाय या घोड़ी या स्त्री का प्रसव सुने, तब गण्डा लेकर व्रत आरम्भ करे । नौ व्रत करने के बाद दसवें दिन गण्डे का पूजन करके विसर्जन करे। ” इसी के साथ उसने पारण के पदार्थ और नियम बतलाये । तब रानी बोली- “ननद ! तुम्हारा व्रत तुमको फले । मैं पूड़ी और दूध के साथ खाने वाली, रानी-महारानी भला पनफरा, गोले की पापड़ी खाकर कैसे रह सकती हूँ ? ऐसा खाना खाय मेरी बला। ”
स्त्री बोली- “ भाभी ! मुझे जो चाहे सो कह लो, परंतु व्रत के सम्बन्ध में कुछ भी मत कहो। मैं इसी व्रत के कारण मारी-मारी फिरी और तुम्हारे देश में आई हूँ । ” तब रानी ने उदासीनता के साथ कहा- “मुझे क्या पड़ी है । तुमको रुचे सो करो। मैं मना नहीं करती ।” स्त्री ने श्रद्धापूर्वक गण्डा लिया । नौ दिन तक नौ व्रत किये, नौ कथाएँ कहीं । दसवें दिन विधिवत पूजन किया, गोला- फरा बनाये और शाम को पारण करने बैठी । उसी समय उसके पति को अनायास प्रेरणा-सी हुई । वह अपनी माता से बोला- “ माँ ! आज तो मैं तुम्हारी बहू को खोजने जाता हूँ ।” तब माता ने पूछा- “उस दिन क्या समझकर निकाल दिया था और आज क्या समझकर उसकी खोज में जा रहे हो ? अब उसका पता कहाँ लगेगा ? न जाने किस जंगली जानवर ने उसे खा लिया होगा या किसी ने अकेली पाकर घर में ठाल लिया होगा। ” इसपर लड़का बोला- “यह कुछ मैं नहीं जानता । मेरा तो जी गवाही देता है कि वह कहीं न कहीं कुशल से होगी । मैं जाता हूँ और उसे बहुत जल्द लिवाये लाता हूँ ।” यह कहकर वह लड़का घर से चला गया ।