दशा माता / दशारानी आठवीं कथा (Page 3/4)

दशारानी के कृपा से उसी जगह माया का शहर बस गया। रानी के भाई-भौजाई आदि सारा नैहर वहाँ प्रकट हो गया। रानी ने अपने परिवार मे मिलकर नौ दिन तक दशारानी के महात्म्य की कथा- कहानियाँ कही । दसवें दिन गंडे का पूजन होता था । उस दिन सवेरे दशारानी ने कहा- “तुम आज नदी में स्नान करने जाओगी, वहाँ तुमको जो स्वर्ण –कलश मिलें , उनको ले लेना और जो डोली तुमको लेने के लिये जाय, उसमें नि:संकोच सवार हो जाना । किसी प्रकार के संकल्प-विकल्प में पड़कर यह न पूछना कि डोली किसकी है ? ”
रानी नदी में स्नान करने गई । वह स्नान करके जल से बाहर निकली, तो किनारे दो सोने के कलश दिखाई दिये । उन्हीं के पास सुन्दर रेशमी वस्त्र सँवारे हुए रक्खे थे । रानी ने वस्त्र बदल कर घड़े भरे, और ज्योंही अपने स्थान की ओर चलना चाहा त्योंहि एक डोली सामने से आता दिखाई दिया । रानी समझ गई कि हो न हो इसी डोली के बारे में मौसी ने मुझे सूचना दी थी । तब वह फौरन डोली में सवार होकर अपने घर गई । वहाँ माया के परिवार की सब-स्त्रियों समेत रानी ने दशारानी के गंडे की पूजा की, सुहागिनों को भोजन कराये, तब पारण किया । तदनन्तर रानी अपने नैहर के परिवार में आनन्दपूर्वक हिल-मिलकर रहने लगी ।
कुछ दिनों के बाद सहसा राजा को रानी का स्मरण हुआ । उसके ध्यान में आया कि कुललक्ष्मी रानी को जिस दिन से जंगल में छोड़ आया हूँ, उसी दिन से आज तक उसका कोई समाचार नहीं मिला, चलकर देखना चाहिये कि उसकी क्या गति हुई । जब वह रानी को खोजने के लिये चलने लगा, तो मन्त्रियों ने समझाया कि अब रानी का आप से मिलना नहीं हो सकता । राजा ने किसी की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। वह चलता- चलता उस स्थान पर पहुँचा जहाँ रानी का डोला रख आया था । परन्तु उस यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि जहाँ सघन वन था, वहाँ सुन्दर नगर बसा हुआ है। राजा के प्रश्न करने पर नगर के लोगों ने कहा- “यह कुललक्ष्मी रानी का नगर है ।” तब तो राजा और भी आश्चर्य में डूब गया। वह बार-बार यही विचार करता था कि यह जगह तो वही है, जहाँ मैं अपनी रानी को छोड़ गया था। क्या उसी के नाम से यह नगर बसा हुआ है ?