दशा माता / दशारानी सातवीं कथा (Page 4/4)
कुछ दिनों बाद बुढ़िया मर गई । तब दशारानी ने सोचा कि अब चलकर देखना चाहिये कि बहू सास के वचन को कहाँ तक पालन करती है ? अत: वह एक वृद्धा भिखारिणी का वेश धारण कर उसके घर आई। उन्हें देखते हीं बहू उठकर खड़ी हो गई, पाँव पड़े , दंडवत् की और बालक को उसके गोद में डाल दिया। दशारानी बोली- “मुझसे दूर ही रह, मेरा मैल लगने से तेरे सफेद वस्त्र मैले हो जायेंगे । ” इस पर बहू ने लपककर आँचल के छोर से उनकी नाक पोंछी और पैरों की धूलि झाड़कर विनती की- “हे माता ! धन-भाग्य उसके जिसको तुम्हारा मैल छू जाय। यह सब सम्पत्ति आपकी है और मैं भी आपकी हूँ ।” उसकी ऐसी श्रद्धा-भक्ति देखकर दशारानी ने आशीर्वाद दिया – “तेरी ऐसी धर्म-बुद्धि है, तो भगवान सदैव तेरा भला करेंगा। तेरा भंडार भरपूर रहेगा ; कभी किसी बात की चिन्ता तुझे न सतायेगी ; जो इच्छा करेगी सो फल पायेगी । ” यह कहकर दशारानी अंतर्ध्यान हो गई।
दशारानी ने जैसी कृपा दृष्टि बुढ़िया ब्राह्मणी पर के, वैसी ही अपने सब भक्तों पर करें। कथा के सुनने –सुनाने वाले सभी का कल्याण हो।
॥ बोला दशारानी माता की जय ॥