दशा माता / दशारानी सातवीं कथा (Page 3/4)
बुढ़िया नदी में नहाकर खड़ी हुई, तो सामने सोने का गेड़आ भरा-भराया रक्खा दिखाई दिया और उत्तम वस्त्र एक किनारे रक्खे थे । बुढ़िया ने किसी से पूछ-ताछ किये बिना ही उन वस्त्रों को पहन लिया। गेड़ुआ हाथ में लेकर वह घर चलने को हुई । तभी वहाँ पर चार कहार डोली के साथ आ पहुँचे और बुढ़िया से बोले- “ यह डोली तुम्हारे लिये आई है , इसी में बैठकर चलो।” बुढ़िया डोले में बैठकर घर आई, तो देखती क्या है कि जहाँ उसकी टूटी-फूटी झोपड़ी थी, वहाँ कंचन (सोने का) महल खड़ा है । बुढ़िया ने महल के भीतर जाकर श्रद्धा और भक्ति पूर्वक दशारानी के गण्डे की पूजा के और अंत में हाथ जोड़कर यह वरदान माँगा – “महारानी ! जैसे तुमने मुझको यह सम्पत्ति दी है , वैसे ही मेरे लड़के का विवाह हो जाय, तब यह सब शोभा दे ।” कुछ हीं दिनों बाद लड़के का विवाह हो गया और बहुत हीं सुन्दर सुशीला बहू घर में आ गई। तब बुढ़िया ने दशारानी से यह दूसरा वरदान माँगा-“ जैसे मेरे बहू-बेटा है ,वैसे ही पोता पाऊँ ।” कुछ दिनों बाद बुढ़िया के लड़के को भी लड़का हो गया।
एक दिन बुढ़िया ने बहू को समझाया – “मेरी यह सब सम्पत्ति दशारानी की दी हुई है । उन्हीं की कृपा से तुम भी इस घर में आई हो । यदि मैं मर जाऊँ और कभी एक मैली-कुचैली बुढ़िया तुम्हारे घर आवे , तो उसका विनय-पूर्वक स्वागत करना । यदि उसकी नाक बहती हो तो उसे आँचल के छोर से पोंछना ; घिन नहीं करना । प्रार्थना करना कि हे माता ! यह सब आपका ही दिया हुआ है । जब कभी दशारानी के गंडे पड़े , तब उनको अवश्य लेना और श्रद्धापूर्वक पूजा करना । जब कभी तुम पर कोई संकट पड़े ,तो सुहागिनें न्योतना । दशारानी की कृपा से तुम्हारी सब इच्छाएँ पूरी होंगी। ”