दशा माता / दशारानी छठीं कथा (Page 6/6)
दशारानी के वचन सुनकर इंद्र समेत सभी देवताओं ने वर-कन्या पर फूल बरसाये। तब तक साधु बाबा भी वहाँ आ गये। साधु बाबा , उसके पीछे दूल्हा और उसके पीछे लड़की, इस प्रकार तीनों गाँव की तरफ चले। जब वे लोग गाँव के पास पहुँचे तो गाँव वालों ने लड़की के पिता को खबर दी कि उसकी लड़की अपने दूल्हे के साथ आ रही है। जिस दिन से लड़की घर से चली गई थी उसी दिन से उसके पिता शर्म से घर से बाहर नहीं निकले थे । गाँववालों की बात सुनकर उसे लगा कि लड़की साधु बाबा के साथ आ रही है, इसलिये गाँववाले उसे ऐसे कह रहे हैं। यह सोचकर उसने घर के दरवाजे को बंद कर लिया। किंतु जब थोड़ी देर के बाद गाँव के बुजुर्ग और प्रतिष्ठित लोगों ने भी उससे यही बात कही , तब वह संकोचावस्था में ही घर से बाहर आया । बाहर आ कर उसने देखा कि उसकी लड़की सचमुच उसके जमाई को लेकर आ रही है ।
यह देखकर उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने इसी खुशी में बधाई बजवानी शुरु कर दी और फिर से विवाह की तैयारी की। तब लड़की ने कहा- “इस तरह ब्याह पूरा नहीं होगा। जब मेरी सास सुहागिनों को न्यौता देकर मनौती पूरी करेगी और उसके बाद बारात आवेगी, तभी विवाह के नेग किये जायें । ” लड़की की बात सुनकर लड़के के माता के घर संदेशा भिजवाया गया। लड़के की माँ निशा ने सुहागिनों को न्यौता दिया और अपनी मनौती पूरी की। उसके बाद वहाँ से बारात चल कर लड़की के घर पर पहुँची। बड़ी धूम-धाम से विवाह सम्पन्न हुआ। वर-वधू अपने घर को चले गये। तब फिर से लड़के की माँ निशा ने सुहागिनों को न्यौता दे भोजन करवाया।
उसी समय से विवाह में भाँवरों के दिन वर के घर सुहागिनों को न्यौतने की परम्परा चल पड़ी। दशारानी ने जैसे सती की दशा फेरी वैसी सब की फेरें । कथा सुनने वाले और सुनाने वाले सब का कल्याण हो।
॥ बोलो दशारानी की जय ॥