दशा माता / दशारानी छठीं कथा (Page 5/6)

तब लड़की ने विनीत भाव से बाबा जी से प्रार्थना करते हुये कहा- “कृपा करके, मुझे उस स्थान पर ले चलिये।” बाबा बोले- “तुम्हें ले चलने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, किंतु लोग कहेंगे कि साहूकार की अर्धब्याही लड़की बाबा के साथ भाग गई। मैं तो सन्यासी हूँ, मुझे इन बातों से कोई असर नहीं। लेकिन तुम और तुम्हारे परिवार वालों को नीचा देखना पड़ेगा। ” इसी प्रकार से साधु ने लड़की को बहुत समझाया; लेकिन लड़की नहीं मानी। लड़की ने कहा- “बाबा! आप तो मेरे पिता-तुल्य हैं । आप मुझे बस उस स्थान तक ले चलिये। आगे मेरी किस्मत में जो लिखा होगा, वही होगा।”
अंतत: बाबा आगे-आगे चले और लड़की पीछे-पीछे। बाबा ने लड़की को पारस पीपल के पास छोड़ दिया। जब संध्या हुई, तो नित्य की तरह झाड़ूदार ने झाड़ू लगाया, भिश्ती ने जल छिड़काव किया और माली ने फूल बिखेरे। देवता गण आ गये। राजा इंद्र और उनकी अप्सरायें आई। अप्सराओं ने नृत्य शुरु कर दिया। कुछ देर के बाद दशारानी पीपल के पेड़ से गोद में अर्धब्याहे को लिये हुई उतर कर दरबार में बैठी। लड़के ने सुरा गाय से दूध लिया। लड़के ने जैसे ही अर्धब्याही का कटोरा अलग रखकर अपना कटोरा मुँह से लगाया कि लड़की कटोरा हाथ में लेकर उसके सामने आ गई और बोली- “अपना भाग लेने के लिये मैं उपस्थित हूँ और जो आज्ञा दी जाय , जो सेवा करूँ।” तब लड़का बोला- “मैं इस प्रकार तुमको नहीं मिल सकता। मैं दशारानी की सेवा में रहता हूँ। अभी मुझे दरबार में जाकर उनकी गोद में बैठना है। यदि तुम मुझे पाना चाहती हो, तो दशारानी को प्रसन्न कर मुझे माँग लो। तभी मैं तुम्हारा हो सकता हूँ।”
इतना कहकर लड़का दूध पीकर दशारानी के गोद में जाकर बैठ गया। लड़की अप्सराओं के साथ नाचने लगी। अप्सरायें संख्या में बहुत थी। थोड़ी-थोड़ी देर के बाद उनकी बदली हो जाती थी। जो थक जाती वो बैठ जाती और उनके स्थान पर दूसरी अप्सरायें नृत्य करने लगती । लेकिन लड़की रातभर बिना थके नाचती रही। जब सवेरा हुआ तो दशारानी ने कहा- “यह नई नाचने वाली लड़की बहुत नाची है ।” उसे बुलाकर दशारानी ने कहा- “मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ । जो माँगना चाहती हो माँग लो।” तब लड़की ने दशारानी से तृवाच करवा लिया कि जो माँगू वो आप देंगी। उसके बाद उसने अपने पति को पकड़ लिया और कहा- “मुझे यही चाहिये।” दशारानी ने कहा- “तूने माँगा तो बहुत; परंतु मैं वचन दे चुकी हूँ , इस कारण तेरा वर तुझे दे देती हूँ ।”
राजा इन्द्र ने पूछा- “भगवती ! यह सब क्या भेद है, जरा मुझे भी बताइये । ” तब दशारनी बोली- “यह लड़का मेरे ही वरदान से पैदा हुआ था। इसकी माता ने मनौती मानी थी कि जब लड़का होगा तो सुहागिनों को न्यौता दूँगी ; परंतु उसने आज तक वचन पूरा नहीं किया। इसी कारण मैं अपने दिये हुये बालक को विवाह-मण्डप से हर लाई थी। यह इसकी अर्धब्याही स्त्री है , परंतु पतिव्रता है। इसी कारण इसने देव-समाज में पहुँचकर मुझसे अपने पति को पा लिया है ।”