दशा माता / दशारानी छठीं कथा (Page 4/6)

उसी समय दशारानी अधब्याहे लड़के को गोद में लिये हुए पीपल के पेड़ से उतरी । इंद्र के साथ-साथ सुरा गाय भी आई थी । सुरा गाय ने दो कटोरा दूध दिया । लड़के ने अर्धब्याही के हिस्से का एक कटोरा अलग रख दिया और एक कटोरा दूध पी लिया । दशारानी पूरी रात उस लड़के को गोद में लिये बैठी रही। सवेरा होते ही सभी देवता गण अपने –अपने स्थान को लौट गये । दशारानी भी पीपल के पेड़ पर लौट गई। साधु भी वहाँ से उठकर गाँव की ओर चल दिया।
साधु गाँव में घर-घर भिक्षा माँगने लगा, तब किसी ने कहा- “बाबा! घर-घर भिक्षा क्यँ माँग रहे हो। साहूकार के घर जाओ, उनकी लड़की सदाव्रत देती है । वहाँ आपको अच्छा भोजन मिल जायेगा ।”
साधु पता पूछकर लड़की के घर पहुँचा । लड़की ने पूछा- “महाराज! आप कच्चा सीधा लेंगे या पका हुआ भोजन करेंगे ? ” साधु ने उत्तर दिया-“यदि पका-पकाया भोजन मिल जाये तो कच्चे से क्या करना।”
भोजन बनकर तैयार हो गया । साधु बाबा भोजन करने को बैठ गये। तब लड़की ने तीन पत्तल बिछाये । एक पत्तल बाबा जी को दिया , एक अर्धब्याहे के नाम का खिसका दिया और एक पत्तल अपने लिये रखा। साधु बाबा ने यह देखते हीं कहा- “वाह ! जो बात वहाँ देखने को मिली थी, वही बात यहाँ भी देखने में आई ।” लड़की ने पूछा- “क्या कहा बाबाजी ? ” बाबा ने बात टालते हुये कहा- “ हम वैरागी लोग; ऐसी अनेक बातें कह जाते हैं। तुम्हें इन बातों से क्या प्रयोजन है ? तुम भोजन करो और भगवान का भजन करो।” लड़की हठ करने लगी । उसने कहा- “जब तक आप सच-सच नहीं बतलायेंगे, मैं भोजन नहीं करूँगी । आप भोजन किजिये और जाइये ।” इस पर भी बाबा मौन रहे । तब लड़की ने कहा-“ आप साधु हैं और मैं सती हूँ । आप या तो उस वचन का रहस्य बतलाइये या मेरा श्राप स्वीकार किजिये।”
तब बाबा बोले- “ईश्वर के कोप से बचा जा सकता है; लेकिन सती के श्राप से बचने का कोई उपाय नहीं है । मैं कहता हूँ, सुनो। जब मै इस गाँव की ओर आ रहा था। तब रास्ते में एक पारस पीपल का पेड़ पड़ा। मैं रात्रि को वहीं पर ठहर गया। रात्रि में वहाँ पर देवताओं की सभा हुई। उस पेड़ पर से एक दूल्हा उतरा। सुरा गऊ ने उस दूल्हे को दो कटोरा दूध दिया। दूल्हे ने एक कटोरा दूध अलग रख दिया और एक कटोरा दूध पी लिया। जैसा कंगन तुम्हारे हाथ में है वैसा उस दूल्हे के हाथ में भी था। ”