दशा माता / दशारानी छठीं कथा (Page 3/6)
दोनों लड़के बड़े हो गये, उनकी सगाई भी पक्की हो गई। लेकिन जेठानी ने अपनी मनौती पूरी नहीं की ; उसने कहा- “लड़के की शादी के दिन सुहगिनें न्यौत लेंगे।” तब देवरानी आशा ने जेठानी से कहा- “बहन ! तुम चाहे जब सुहागिन न्यौतना, लेकिन मैं तो मण्डप के दिन हीं मनौती पूरी करूँगी।” देवरानी ने मंडप के दिन सुहागिनों को न्यौत कर विधिपूर्वक भोजन कराया और अपनी मनौती पूरी कर ली। लेकिन जेठानी इस बार भी टाल गई।
मण्डप के बाद दोनों लड़के विवाह के लिये बारात लेकर चल पड़े । देवरानी के लड़के की शादी तो बहुत अच्छे तरह से सम्पन्न हो गई। लेकिन जेठानी के लड़के की शादी के बीच में हीं , दशारानी ने लड़के को हर लिया । दूल्हा के गायब होते ही चारों तरफ हाहाकार मच गया। सभी लोग दूल्हे को खोजने लगे। लेकिन दूल्हा कहीं नहीं मिला। सारे बाराती बिना दूल्हा-दुल्हन के वापस लौट आये। परंतु लड़की के माता-पिता संकट में पड़ गये, कि अपनी अर्धब्याही लड़की का क्या करे। गाँववालों ने कहा- “रोने-धोने से कुछ नहीं होगा। अब तो इस समस्या का उपाय निकालो।” लड़की की माँ ने कहा- “लड़की को लेकर डूब मरने के सिवा, मुझे कोई उपाय नहीं सूझता।” तब गाँव के बुजुर्गों ने कहा- “ऐसा नहीं करो। लड़की से भी तो पूछो कि वह क्या चाहती है । यह सब तो उसके भाग्य में लिखा था इसलिये ऐसा हुआ। ” जब लड़की से पूछा गया तो उसने कहा- “ आप लोग जो भी उपाय बतलाओगे मैं वह मानने को तैयार हूँ ।”
तब सब की सलाह से यह तय किया गया कि जो भी शादी का सामान बचा हुआ है, वह लड़की को सौंप दिया जाय। वह इन्हीं सामानों से जरूरतमंदों के लिये सदाव्रत किया करेगी। हो सकता है किसी के आशीर्वाद से लड़की का भला हो जाय। कहा भी गया है पुण्य की जड़ पाताल में होती है। लड़की उसी दिन से सदाव्रत के काम में लग गई। जो भी उसके दरवाजे पर आता , उसका सत्कार करती और भोजन करवाती। सारे दिन सदाव्रत करती और शाम को थक कर सो जाती । इसी प्रकार कई वर्ष बीत गये।
एक दिन एक साधु तीर्थयात्रा करते हुये उसी गाँव की ओर आ रहा था, जहाँ पर वह लड़की सदाव्रत करती थी। गाँव से बहुत दूर घने जंगल में एक पीपल का पेड़ था, उस पीपल के पेड़ को गाँव वाले पारस पीपल कहा करते थे। उस पीपल के पेड़ पर दशारानी का वास था। साधु चलता-चलता शाम को उसी पेड़ के नीचे पहुँचा और वहीं पर ठहर गया। अंधेरा होते हीं झाड़ूदार ने वहाँ की जमीन पर झाड़ू लगाकर साफ-सफाई कर दी, भिश्ती ने पानी का छिड़काव किया। माली ने चारों ओर फूल सजा दिये। धीरे-धीरे अनेक देवता गण वहाँ पर आकर बैठने लगे। कुछ देर बाद इंद्र देव भी उस स्थान पर अप्सराओं के साथ उपस्थित हो गये। इंद्र के सामने अप्सरायें नृत्य करने लगी।