दशा माता / दशारानी छठीं कथा (Page 2/6)
तब उसने जेठानी निशा से कहा- “लो अब घर जाकर दशारानी का गण्डा ले लो । नौ दिन तक कथा सुनना और दसवें दिन सिर से स्नान करके पूजन करना। दशारानी चाहेंगी तो तुम्हारी मनोकामना दस दिन के भीतर पूर्ण हो जायेगी ।” उसने अपने घर जाकर देवरानी आशा से कहा- “आज एक पहलौठी गाय बछवा ब्याई है, आओ हम दोनों भी दशारानी के गण्डे लें ।” देवरानी आशा ने कहा- “बहुत अच्छा ।” इस प्रकार दोनों ने दशारानी का ध्यान करके गण्डा लिया और मनौती माँगी कि यदि हमारे सन्तान पैदा होगी तो हम सुहागिनें न्यौत कर दुर्रैया ( सुहागिनों को विधिपूर्वक भोजन करवायेंगी ) करायेंगी।
दशारानी के गण्डे की पूजा होने के पहले ही दोनों गर्भवती हुई। दशारानी की कृपा से नौ महीने नौ दिन के बाद दोनों ने दो सुंदर बालक को जन्म दिया। लड़कों के जन्म-संस्कार भी हो गये ।तब देवरानी आशा ने जेठानी निशा से कहा- “जेठानी जी ! अब तो लड़कों के जन्म-संस्कार भी हो गये। अब हमें सुहागिन न्यौतने की मनौती पूरी कर देनी चाहिये।” जेठानी निशा ने उत्तर दिया - “ऐसी भी क्या जल्दी है ; जब लड़कों का अन्न-प्राशन करेंगे , तब मनौती पूरी कर लेंगे।” देवरानी आशा ने जेठानी निशा की बात मान ली। कुछ समय बीतने के बाद लड़कों के अन्न- प्राशन भी हो गये। देवरानी ने दुबारा जेठानी को याद दिलाया; इस बार भी जेठानी निशा ने बात टाल दिया और कहा- “ अभी नहीं; लड़कों के मुण्डन-संस्कार के समय सुहागिनें न्यौत लेंगे।” इस बार भी देवरानी आशा ने जेठानी की बात मान ली। कुछ वर्ष और बीत गये, दोनों लड़कों के मुण्डन का दिन भी आ गया देवरानी ने एक बार फिर से जेठानी को कहा ; लेकिन जेठानी ने कहा- “लड़कों की सगाई के समय मनौती पूरी कर लेंगे।”