दशा माता / दशारानी तीसरी कथा (Page 3/6)
बड़ी भावज की बात सुनकर लड़की ने कहा- “ठीक है ।” तब भावजों ने कहा कि अच्छा है, परंतु पहले हम अपनी सास से पूछ लें फिर तुम्हें अपने घर ले चलेंगे। यह कहकर सभी भावज पानी लेकर घर को चली गई। घर पहुँचकर बड़ी बहू ने सास से कहा- “सासु माँ ! कुएँ की जगत पर एक बेसहारा दु:खिनी लड़की बैठी है ,वह हमारे यहाँ तुम्हारे पोते-पोतियों को खिलाने के लिये राजी है । यदि आप की आज्ञा हो तो उसे रख ले। ” सास ने कहा- “ खुशी से रख लो। पर इतना ध्यान रखना कि बाद में कलह न हो। ” सभी बहुओं ने कहा- “ नहीं होगा। ” तब सास ने दु:खिनी को रखने की आज्ञा दे दी।
जब दूसरी बार बहुएँ पानी लेने कुएँ पर गई तो लड़की को अपने साथ घर ले आई । वह अपने भावज के बच्चों को खिलाती और बदले में जो सीधा मिलता उससे अपना निर्वाह करती । इसी तरह कुछ दिन बीत गये। दैवयोग से फिर से दशारानी के गंडे लेने का अवसर आ गया। सास ने सभी बहुओं को बुलाया और कहा- “बहुओं ! आओ हम- सब दशारानी के गंडे लेवें।” तब बहुओं ने पूछा- “सासु माँ !क्या दु:खिनी के भी गंडे लिये जायेंगे ? ” तब सास ने कहा-“ जब वह इसी घर में रहती है , तो उसे क्यों शुभ कार्य से दूर रखा जाये । उसका भी गंडा लिया जायेगा।” बहू ने कहा- “इसी तरह आप ने ननद रानी का भी गंडा लिया था, लेकिन पूजा के पहले हीं वह विदा हो गई । अब दु:खिनी का गंडा लेने को कह रही हो।” सास ने कहा- “इसमें क्या हानि है। तुम्हारी ननद ने अपने घर जाकर पूजा की होगी । दु:खिनी भी यदि यहाँ रहेगी तो हमारे साथ पूजा करेगी। नहीं तो जहाँ रहेगी वहीं पूजा कर लेगी।”