दशा माता / दशारानी तीसरी कथा (Page 2/6)

शाम को जब घर में सास-ननद, देवरानी-जेठानी सभी स्त्रियाँ एक साथ बैठी, तो उन्होंने ने भी गंडे की बात करनी शुरु कर दी । किसी ने कुछ कहा तो किसी ने कुछ । इस प्रकार से सभी ने गंडे की निंदा हीं की । सभी की बात सुन-सुनकर नई बहू को क्रोध आ गया और उसने अपने गले से गंडे को तोड़कर आग में डाल दिया। गंडे के जलते हीं , पूरे घर में आग लग गई । चारों ओर आग लग गई। सब आदमी अपने-अपने प्राण बचाकर इधर-उधर भागने लगे । उस घर मे सभी कुछ जलकर खत्म हो गया, केवल नई बहू और उसका पति हीं बच गये।
घर का सब सामान जल चुका था । न खाने को अन्न बचा, न पहनने को वस्त्र । इस कारण वे दोनों भी गाँव छोड़कर चल दिये। गाँव के बाहर जाकर पति ने पत्नी से कहा- “ कुछ समझ में नहीं आता। इस विपत्ति मे कहाँ जायें ? ” तब स्त्री बोली- “इस समय मेरे नैहर चले चलो ।” पति ने पत्नी की बात मान ली । दोनों चलते-चलते लड़की के नैहर के पास पहुँच गये । गाँव के पास पहुँच कर लड़की ने कहा- “ जब तक कोई जीविका नहीं मिलती , तुम भाड़ झोंककर अपना पेट भरो और मैं भी कुछ मजदूरी करती हूँ। ” पति भाड़ झोंकने लगा और लड़की कुएँ के जगत पर जाकर बैठ गई।
उसी कुएँ पर गाँव भर की स्त्रियाँ पानी भरने को आती थी । कुछ देर में लड़की की भावजें भी वहाँ पानी भरने आई। लेकिन उनलोगों ने लड़की को नहीं पहचाना और उससे पूछा- “बहन ! तुम किसी भले घर की मालूम होती हो । क्या तुम कहीं काम करना चाहोगी ? ” तब लड़की ने कहा- “ काम तो अवश्य करूँगी ; लेकिन नीच टहल नहीं करूँगी और न खराब खाना खाऊँगी। ” बड़ी भावज ने कहा- “क्या तुम हमारे यहाँ काम करोगी ? हमारे यहाँ तुम्हारे लिये नीच काम नहीं है। जब से मेरी ननद का गौना हो गया है , तब से हमारे बच्चे परेशान होते हैं। तुम हमारे बच्चों की देखभाल करना और बदले में सीधा लेकर अपना भोजन बनाकर खाना। ”