दशा माता / दशारानी तीसरी कथा (Page 4/6)
सबकी सम्मति से दु:खिनी ने भी गंडा ले लिया । नौ दिन तक कथा-कहानी होती रही । व्रत और पूजन होते रहें । दसवें दिन साहूकारिन और उसकी बहुओं ने सर से स्नान किया । घर को गोबर से लीपा , चौक पूरा किया और पूजा की तैयारी करने लगी। इतने में दु:खिनी ने बहू से कहा- “भाभी ! मुझे भी फटा-पुराना साड़ी मिल जाता तो मैं भी स्नान कर आऊँ । ” तब बहू ने सास से कहा-“हमारे पास ननदजी की साड़ी रखी है, कहो तो इसे दे दूँ। जब ननद जी आयेंगी तो उनके लिये नई साड़ी मँगवा देंगे ।” सास ने कहा- “ मुझे आपत्ति नही है , दे दो । लेकिन तुम्हारी ननद झगड़ा न करे। तुम जानो, तुम्हारा काम जाने।”
लड़की अपनी पुरानी साड़ी लेकर सर से स्नान कर आई। गीले बाल बिखराये हुये जब वह पहुँची तब तक पूजा आरम्भ हो चुकी थी। बड़ी बहू ने दु:खिनी को देखकर कहा- “देखो ! बिल्कुल अपनी ननदजी लग रही है ।” सास ने गुस्से मे कहा- “तुम सब हमेशा बक-बक करते रहती हो। पूजा-पाठ भी ठीक से नहीं करने देती। इसमें तो मैं कथा-कहानी भी भूल जाऊँ।” सास की डाँट सुनकर सब बहुएँ चुप हो कर बैठ गई।
पूजा समाप्त होने पर दु:खिनी समेत सब लोगों ने पारण किया। पारण के बाद सभी बैठ कर एक-दूसरे का बाल गूँथ रहीं थी। एक बहू ने दु:खिनी से कहा- “आ मैं तेरा सर गूँथ दूँ। ।” वह दु:खिनी का सर गूँथते हुये बोली – “जैसी गूँथ इसके सर में है ठीक वैसी हीं गूँथ हमारे ननदजी के सर में भी थी।” तब साहूकारिन ने क्रोधित होते हुये कहा- “मेरी लड़की अपने ससुराल में सुखपूर्वक होगी और तुम सब इस दु:खिनी से मेरी लड़की की तुलना कर रही हो ।” बहू ने कहा- “क्षमा किजिये, मुझसे भूल हो गई।”
साहूकारिन ने बहू को तो डाँट दिया लेकिन उसे अंदेशा हुआ, इसलिये उसने दु:खिनी से कहा- “आज रात तुम मेरे पास सोना।” जब रात को सब सो गये , तब साहूकारिन ने दु:खिनी से पूछा- “दु;खिनी ! अपने नैहर के बारे में कुछ बता। वहाँ कौन-कौन थे? ”