दशा माता / दशारानी पहली कथा (Page 2/10)
उसी समय बुढ़िया का लड़का परदेश से आ गया। उसने दरवाजे से आवाज लगाई । सुनकर माँ ने मन में कहा-“क्या हरज हैं , उसे जरा बाहर ठहरने दो, मैं पारण कर लूँगी, तब किवाड़ खोलूँगी ।’ परन्तु बहू को रुकने का सब्र नहीं हुआ । अपनी थाली का अन्न इधर-उधर करके झट से पानी पीकर उठ खड़ी हुई । उसने जाकर किवाड़ खोले । पति ने उससे पूछा- “माता कहाँ है ? ” स्त्री ने कहा- “वह तो अभी पारण कर रही है । ” तब पति बोला- “मैं तेरे हाथ का जल अभी नहीं पिऊँगा, मैं बारह बरस में आया हूँ, इतने दिनों तक न जाने तू कैसी रही होगी । माता आयेगी, वह जल लायेगी, तब जल पिऊँगा ।” यह सुनकर स्त्री चुपचाप बैठी रही ।
माता पारण करने के बाद जब अपनी थाली धोकर पी चुकी, तब वह लड़के के पास गई। लड़के ने माँ के पैर छुए । माता उसे आशीर्वाद देती हुई घर के भीतर लिवा ले गई । माता ने थाली परोसकर रक्खी । बेटा भोजन करने बैठ गया । उसने हाथ में प्रथम ग्रास लिया और फेरों के वे टुकड़े जो बहू ने अपनी थाली से फेंक दिये थे, आपसे आप उचककर उसके सामने आने लगे । उस ने माँ से पूछा- “ यह सब क्या तमाशा है ? ” माँ बोली- “मैं क्या जानूँ, बहू जाने ।” यह सुनते ही लड़का आग-बबूला हो गया । वह बोला-“ऐसी बहू किस काम की, जिसके चरित्र की तू साक्षी नहीं है । इसको अभी निकाल बाहर करो । यदि यह घर में रहेगी, तो मैं घर में न रहूँगा।”
माता ने पुत्र को व्रत-पारण का सब हाल बताकर हर तरह से समझाया; परन्तु उसने एक बात न मानी। वह यही कहता रहा कि इसे निकाल बाहर करो, तभी मै घर में रहूँगा । माँ ने सोचा , बहू को थोड़ी देर के लिये बाहर कर देती हूँ , इतने में लड़के का गुस्सा शांत पड़ जायेगा । इसकी बात रह जायेगी, तब फिर इसे घर में बुला लूँगी । उसने बहू से कहा- “देहरी के बाहर जाकर ओसारे के नीचे खड़ी होना ।” जब बहू ओसारे के नीचे खड़ी हुई, तो ओसारा बोला- “मुझे इतना भार छानी-छप्पर का नहीं है , जितना तेरा है ; दशारानी के विरोधी को मैं छाया नहीं दे सकता ।” तब वह वहाँ से चलकर घिरौंची (दरवाजे) के पास गई । घिरौंची बोली- “ मुझसे हटकर खड़ी हो, मुझे इतना भार घरों का नहीं है, जितना तेरा है ।” वह वहाँ से भी हटकर घूरे पर जाकर खड़ी हुई । तब घूरा बोल- “मुझे इतना भार सब कूड़े का नहीं है, जितना तेरा है ; चल हटकर खड़ी हो ।” इसी तरह वह जहाँ कहीं जाती, वहीं से हटाई जाती थी । इस कारण वह अपने जी में अत्यंत दुखी होकर जंगल को चली गई ।