सोलह सोमवार व्रत उद्यापन विधि:-(Solah Somvar Udyapan Vidhi) Page 7/7
आरती
एक थाली या आरती के पात्र में दीपक तथा कपूर प्रज्वलित कर शिवजी की आरती करें -
शिवजी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा , प्रभु हर ॐ शिव ओंकारा |
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
|| ॐ जय शिव ओंकारा......||
एकानन चतुरानन पंचांनन राजै |
हंसासंन , गरुड़ासन ,वृषवाहन साजै॥
|| ॐ जय शिव ओंकारा......||
दो भुज चार चतुर्भज दस भुज अति सोहें |
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें॥
|| ॐ जय शिव ओंकारा......||
अक्षमाला , वनमाला , मुण्डमालाधारी |
चंदन , मृगमद सोहें, भाले शशिधारी ॥
|| ॐ जय शिव ओंकारा......||
श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें।
सनकादिक, ब्रह्मादिक ,भूतादिक संगें॥
|| ॐ जय शिव ओंकारा......||
कर मध्ये कमण्डलु , चक्र त्रिशूलधर्ता |
जगकर्ता, जगहर्ता, जगपालनकर्ता ॥
|| ॐ जय शिव ओंकारा......||
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका |
प्रवणाक्षर के मध्यें ये तीनों एका ॥
|| ॐ जय शिव ओंकारा......||
त्रिगुण शिव की आरती जो कोई नर गावें |
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें ॥
|| ॐ जय शिव ओंकारा......||
॥ इति श्री शिव आरती॥
आरती का तीन बार प्रोक्षण करके सबसे पहले सभी देवी-देवताओं को आरती दें। उसके बाद उपस्थित व्यक्तियों को आरती दें एवं स्वयं भी आरती ले।
पुष्पाञ्जलि :-
हाथ में पुष्प लेकर खड़े हो जायें और पुष्पाञ्जलि अर्पित करें:-
ऊँ नम: शिवाय पुष्पाञ्जलि समर्पयामि।
क्षमा-प्रार्थना:-
दोनों हाथ जोड़कर शिव जी से क्षमा प्रार्थना करें:-
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व महेश्वर: ॥
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व सुरेश्वरी: ॥
विसर्जन:-
विसर्जन के लिये हाथ में अक्षत , पुष्प लेकर मंत्र –उच्चारण के द्वारा विसर्जन करें-
स्वस्थानं गच्छ देवेश परिवारयुत: प्रभो ।
पूजाकाले पुनर्नाथ त्वग्राऽऽगन्तव्यमादरात्॥
इसके बाद ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें। यदि सम्भव हो तो ब्राह्मणों को भोजन करावे।
सभी उपस्थित जनों को चूरमा प्रसाद के रूप में दें एवं स्वयं भी ग्रहण करें। उसके बाद बंधु-बाँधवों सहित स्वयं भोजन करें।
॥ इति सोलह सोमवार व्रत उद्यापन विधि ॥