औदुम्बर व्रत | Audumbar Vrat

श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को औदुम्बर नामक व्रत किया जाता है। इस व्रत में गूलर के वृक्ष की पूजा की जाती है। जिस प्रकार यह (गूलर का) वृक्ष बहुत जन्तुयुक्त फलोंवाला होता है, उसी प्रकार व्रतकर्ता भी अनेक पुत्रोंवाला होता है और उसके वंश की वृद्धि होती है। यह व्रत करनेवाला सुवर्णमय पुष्पों से युक्त वृक्ष की भाँति लक्ष्मीप्रद हो जाता है।

पूजा विधि एवं महात्म्य:-

भगवान शिव बोले- हे सनत्कुमार! अब मैं द्वितीया के शुभ व्रत का वर्णन करूँगा। जिसे श्रद्धापूर्वक करके मनुष्य लक्ष्मीवान तथा पुत्रवान हो जाता है। औदुम्बर नामक यह व्रत पाप का नाश करनेवाला है।
शुभ सावन का महीना आने पर द्वितीया तिथि को प्रात:काल स्नान कर इस व्रत का संकल्प करें। तत्पश्चात विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिये। इस व्रत को करनेवाला स्त्री हो या पुरुष- वह सभी सम्पदाओं का पात्र हो जाता है। इस व्रत में प्रत्यक्ष गूलर के वृक्ष की पूजा करनी चाहिये। किंतु उसके (गूलर के वृक्ष)के न मिलने पर भातपर (पूजागृह के दीवार) पर वृक्ष का आकार बनाकर इन नाममंत्रों से उसकी पूजा करनी चाहिये-

उदुम्बर नमस्तुभ्यं नमस्ते हेमपुष्पक ।
सजन्तुफलयुक्ताय नमो रक्ताण्डशालिने॥

अर्थ: -हे उदुम्बर! आपको नमस्कार है। हे हेमपुष्पक! आपको नमस्कार है। जन्तुसहित फल से युक्त तथा रक्त अण्डतुल्य फलवाले आपको नमस्कारहै।
इसके अधिदेवता शिव तथा शुक्र की भी पूजा गूलर के वृक्ष में करनी चाहिये| गूलर के तैंतीस फल लेकर तीन बराबर भाग करें। उसमें से ग्यारह फल ब्राह्मण को दान करें, ग्यारह देवता को अर्पित करें और उतने हीं स्वयं ग्रहण करें।उस दिन अन्न का भोजन न करें। शिव तथा शुक्र का विधिवत पूजन कर रात्रि जागरण करें।हे तात! इस प्रकार ग्यारह वर्ष तक व्रत का अनुष्ठान करने के अनन्तर व्रत की सम्पूर्णता के लिये उद्यापन करना चाहिये। सुवर्णमय फल, पुष्प तथा पत्रसहित, एक गूलर का वृक्ष बनाये और उसमें शिव तथा शुक्र की प्रतिमा का पूजन करें। तत्पश्चात प्रात:काल होम करे। गूलर के शुभ, कोमल तथा छोटे-छोटे एक सौ आठ फलों से तथा गूलरकी समिधाओं से तिल तथा घृत सहित होम करें। इस प्रकार होम समाप्त करके आचार्य की पूजा करे; तदनन्तर सामर्थ्य हो तो एक सौ अन्यथा दस ब्राह्मणों को ही भोजन करायें।
हे वत्स! इस प्रकार व्रत किये जाने पर जो फल होता है, उसे सुनिये।जिस प्रकार यह (गूलर का) वृक्ष बहुत जन्तुयुक्त फलोंवाला होता है, उसी प्रकार व्रतकर्ता भी अनेक पुत्रोंवाला होता है और उसके वंश की वृद्धि होती है। यह व्रत करनेवाला सुवर्णमय पुष्पों से युक्त वृक्ष की भाँति लक्ष्मीप्रद हो जाता है।

॥ इति औदुम्बर व्रत ॥