श्रावण मास की संकष्टी जुलाई 14, 2025, सोमवार - savan sankashti
श्रावण मास की संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से सभी प्रकार की बाधायें दूर होती है। इस व्रत को करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। किसी प्रकार का संकट आने पर इस व्रत को करने से मनुष्य संकट मुक्त हो जाता है। यह विद्यार्थियों को विद्या तथा धनेच्छु को धन की प्राप्ति करवाता है। संतान की इच्छा करने वाले को संतान प्राप्ति, रोगग्रस्त को व्याधिमुक्त करता है।
यदि संकष्टी चतुर्थी मंगलवार को पड़े तो यह अति शुभकारक मानी गयी है। मंगलवार के दिन पड़ने वाली चतुर्थी को “अंगारकी चतुर्थी” कहते हैं। गणेश अंगारकी चतुर्थी का व्रत करने से पूरे साल भर के चतुर्थी व्रत के करने का फल प्राप्त होता है।
अंगारक (मंगल देव) के कठिन तप से प्रसन्न होकर गणेश जी ने वरदान दिया और कहा कि चतुर्थी तिथि यदि मंगलवार को होगी तो उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जायेगा। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी काम बिना किसे विघ्न के सम्पूर्ण हो जाते हैं। भक्तों को गणेश जी की कृपा से सारे सुख प्राप्त होते हैं ।
प्रात:काल उठकर नित्य कर्म से निवृत हों, सफेद तिल मिश्रित जल से स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा गृह में गणेश जी के समक्ष निम्न प्रकार से संकल्प करें - ‘जब तक चन्द्रोदय नहीं होगा, मैं निराहार रहूँगा/ रहूँगी । पहले गणेश पूजन करके तभी भोजन ग्रहण करूगी/ करूँगा।’
इसके बाद शाम के समय मिट्टी अथवा धातु (सोने, चांदी, ताम्बे) के कलश में जल भरकर पूजा स्थल पर रखें । उस पर लाल वस्त्र बिछायें। उसके ऊपर अक्षत अथवा रोली से अष्टदल कमल की आकृति बनावें और उस पर गणेश जी की मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात षोडशोपचार विधि से भक्ति पूर्वक पूजन करें। पूजन के साथ निम्न बातों का उच्चारण करें-
- हे लम्बोदर! चार भुजा वाले! तीन नीत्र वाले! लाल रंग वाले! हे नील वर्ण वाल! शोभा के भण्डार! प्रसन्न मुख वाले गणेश जी! मैं आपका ध्यान करता/करती हूँ । मैं आपका आवाहन करता/करती हूँ । हे विघ्नराज ! मैं आपको प्रणाम करता/करती हूँ, यह आसन है। हे लम्बोदर! यह आपके लिये पाद्य है, हे शंकरसुवन! यह आपके लिये अर्घ्य है। हे उमापुत्र! यह आपके स्नानार्थ जल है। हे वक्रतुण्ड! यह आपके लिए आचमनीय जल है। हे शूर्पकर्ण! यह आपके लिए वस्त्र है। हे कुब्जे! यह आपके लिए यज्ञोपवीत है । हे गणेश्वर! यह आपके लिए रोली, चंदन है। हे विघ्नविनाशन! यह आपके लिए फूल है। हे विकट! यह आपके लिए धूपबत्ती है। हे वामन! यह आपके लिए दीपक है। हे सर्वदेव! यह आपके लिए लड्डु का नैवेद्य है। हे सर्वार्त्तिनाशन देव! यह आपके निमित्त फल है। हे विघ्नहर्ता! यह आपके निमित्त मेरा प्रणाम है। प्रणाम करने के बाद क्षमा प्रार्थना करें।
इस प्रकार षोडशोपचार रीति से पूजन करके नाना प्रकारके भक्ष्य पदार्थों को बनाकर भगवान को भोग लगावें।
शुद्ध देशी घी के पंद्रह लड्डु बनावें। भगवान को लड्डु अर्पित करके उसमें से पाँच ब्राह्मण को दे दें, उसके साथ दक्षिणा भी दें । चन्द्रोदय होने पर पहले चतुर्थी तिथि के निमित्त अर्घ्य दें। भक्तिभाव से अर्घ्य देवें। चतुर्थी को अर्घ्य देते हुये निम्न प्रकार से प्रार्थना करें- “हे देवी! तुम सब तिथियों में सर्वोत्तम हो, गणेश जी की परम प्रियतमा हो। हे चतुर्थी हमारे प्रदत्त अर्घ्य को ग्रहण करो, तुम्हें प्रणाम है।” इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य प्रदान करें - “क्षीरसागर से उत्पन्न हे लक्ष्मी के भाई! हे निशाकर! रोहिणी सहित हे शशि! मेरे दिये हुये अर्घ्य को ग्रहण किजिये।” तत्पश्चात, गणेश जी को प्रणाम करते हुये निम्न प्रकार से कहें- “हे लम्बोदर! आप सम्पूर्ण इच्छाओं को पूर्ण करनेवाले हैं आपको प्रणाम है । हे समस्त विघ्नों के नाशक! आप मेरी अभिलाषाओं को पूर्ण करें।” तत्पश्चात ब्राह्मण को हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-“ हे द्वीजराज! आपको नमस्कार है, आप साक्षात देवस्वरूप है। गणेशजी की प्रसन्नता के लिए हम आपको लड्डु समर्पित कर रहे हैं। आप हमारा उद्धार करने के लिए दक्षिणा सहित इन पाँच लड्डुओं को स्वीकार करें। हम आपको नमस्कार करते हैं।” इसके बाद ब्राह्मण भोजन करवायें । यदि सामर्थ्य ना हो तो अन्न तथा दक्षिणा प्रदान करें।
अब गणेश जी से प्रार्थना करें। प्रार्थना करके मूर्ति का विसर्जन करें। हाथ में अक्षत लेकर इस प्रकार बोलते हुये विसर्जन करें- ‘हे देवों में श्रेष्ठ! गणेश जी! आप अपने स्थान को प्रस्थान किजिए एवं इस व्रत पूजा के फल को दिजिए।’ विसर्जन के बाद, अपने गुरु को अन्न-वस्त्रादि एवं दक्षिणा के साथ गणेश जी की मूर्ति दे देवें।