बृहस्पतिवार व्रत उद्यापन विधि Page 9/10

विष्णु जी की आरती

|| ॐ जय जगदीश हरे ||
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ||
जो ध्यावे फल पावे, दुख विनसे मन का स्वामी दुख विनसे मन का
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ||
|| ॐ जय जगदीश हरे ||
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी, स्वामी शरण गहूं मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ||
|| ॐ जय जगदीश हरे ||
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी स्वामी तुम अंतर्यामी
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ||
|| ॐ जय जगदीश हरे ||
तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्ता स्वामी तुम पालन कर्ता
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ||
|| ॐ जय जगदीश हरे ||
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति,
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ||
|| ॐ जय जगदीश हरे ||
दीनबंधु दुखहर्ता, ठाकुर तुम मेरे, स्वामी ठाकुर तुम मेरे
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे ||
|| ॐ जय जगदीश हरे ||
विषय विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा, स्वामी पाप हरो देवा,
श्रद्धा भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा ||
|| ॐ जय जगदीश हरे ||
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे, स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे ||
|| ॐ जय जगदीश हरे ||