सीता नवमी या जानकी नवमी

सीता नवमी का त्योहार वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है । इस वर्ष सीता नवमी या जानकी नवमी २४ अप्रैल २०१८ मंगलवार (24th April 2018 Tuesday) को है। इस तिथि को ही सीता माता का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था । इसलिये इस तिथि को सीता नवमी का त्योहार मनाया जाता है । जनकपुर में बहुत समय तक वर्षा नहीं जिसके कारण अकाल वहाँ अकाल पड़ गया । तब महाराज जनक ने ऋषियों के कहे अनुसार हल से भूमि को जोत रहे थे जिससे की वर्षा हो जाये। हल से भूमि के जोतते समय एक स्थान पर हल की नोक टकरा गई, जब वहाँ पर की मिट्टी हटाई गई तो एक सोने का घड़ा मिला, जिसमें एक नवजात कन्या थी। वही सीता जी थीं। चूँकि हल के नोक को ‘सीता’ कहा जाता है इसलिये माता सीता का नाम “सीता” रखा गया। उसके बाद वर्षा भी हुई। जिस दिन सीता माता का अवतरण हुआ उस दिन वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी थी। इसलिये वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी सीता नवमी या जानकी नवमी कहलाती है ।

सीता नवमी या जानकी नवमी पूजा विधि:-

प्रात:काल उठकर नित्य कर्म से निवृत हों, स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन लें । पूजा घर को साफ कर शुद्ध कर लें । आसन पर बैठ जायें । चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें । उस पर सीता-राम की मूर्ति स्थापित करें। उसके बाद दोनों हाथ जोड़कर श्रीराम सहित सीता माता का ध्यान करे। ध्यान के बाद विधि-विधान से पूजा एवं आरती करें । इस तिथि को माता जानकी तथा राम जी के स्तोत्रों का पाठ करें जैसे जानकी स्तोत्र, रामचंद्रष्टाकम्, रामचरित मानस आदि । इन पाठों से सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं।

सीता नवमी या जानकी नवमी की कथा

प्राचीन समय के बात है किसी गाँव में वेददत्त नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुहाना के साथ रहते थे। उनकी पत्नी व्यभिचारी थी । एक दिन ब्राह्मण भिक्षा के लिये गये हुये थे। मौका पाकर ब्राह्मण की पत्नी कुसंगत में पड़कर व्यभिचार कर्म में लिप्त हो गई । उसके व्यभिचार कर्म के कारण उस गाँव में आग लग गई और उस व्यभिचरिनी ब्राह्मणी का अन्त हो गया।
अपने पाप कर्म के कारण उस ब्राह्मणी का जन्म चांडाल के घर में हुआ । वह अंधी होने के साथ-साथ कुष्ठ रोग से ग्रसित थी। इस तरह से वह अपने पूर्व जन्म के कर्मों का फल भुगत रही थी।
एक दिन वह भूख-प्यास से बेहाल भटकती-भटकती वेदवती गाँव पहुँची। उस दिन वैशाख मास की पुण्यदायिनी शुक्ला नवमी थी । वह क्षुधा से व्याकुल लोगों से गुहार लगाने लगी कि कृपा करके मुझे कुछ अन्न दे दो। कहते-कहते वह चांडालिनी श्री स्वर्ण भवन के हजार पुष्प मंडित स्तम्भों के पास पहुँच गई और गुहार लगाई‌ - “मुझे कुछ खाने को दे दो।” तभी एक संत ने कहा- “हे देवी! आज सीता नवमी का पावन पर्व है, इस दिन अन्न देने वाला पाप का भाग होता है । अत: तुम कल प्रात:काल आना व्रत के पारणा के समय और ठाकुर जी के प्रसाद को ग्रहण करना।” उसके बहुत विनती करने पर किस ने उस चांडालिन को तुलसीदल एवं जल दिया। वहीं खा कर वह मर गई। लेकिन अनजाने में ही उससे सीता नवमी का व्रत हो गया था। उस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गये। अगले जन्म में वह कामरूप के महारज की भार्या कामकाला के नाम से प्रसिद्ध हुई । उन्होंने कई मंदिरों का निर्माण करवाया और सारा जीवन धर्म के कार्यों में लगी रही।
इसी प्रकार से जो मनुष्य सीता नवमी विधि-विधान से व्रत तथा पूजन करते हैं , वे सभी प्रकार के सुख तथा सौभाग्य को प्राप्त करते हैं।