शर्करा सप्तमी
वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को शर्करा सप्तमी व्रत किया जाता है। यह व्रत सभी पापों को नष्ट करनेवाले तथा आरोग्य और अनंत ऐश्वर्य प्रदान करनेवाला है। यह शर्करा सप्तमी-व्रत अश्वमेघ यज्ञ का फल देनेवाला है। इस व्रत के करने संतान की वृद्धि होती है तथा समस्त उपद्रव शांत हो जाते हैं। इस व्रत को करनेवाला एक कल्प स्वर्ग में रहकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
शर्करा सप्तमी विधि तथा महात्म्य:-
तदनन्तर सौरसूक्त का जप करे अथवा सौरपुराण का श्रवण करे। दूसरे दिन अष्टमी को प्रात:काल उठकर स्नान आदि नित्यक्रिया सम्पन्न कर भगवान सुर्य का पूजन करे। तत्पश्चात सारी सामग्री वेदवेत्ता ब्राह्मण को दान देकर शर्करा, घृत और पायस से यथाशक्ति ब्राह्मण-भोजन कराये। स्वयं भी मौन होकर तेल और लवणरहित (बिना नमक का) भोजन करे। इस विधि से पूरे वर्ष प्रतिमास व्रत करें। पूरा वर्ष होनेपर यथाशक्ति उत्तम शय्या, दूध देनेवाली गाय, शर्करापूर्ण घट (कलश), गृहस्थी के उपकरणों से युक्त मकान तथा अपनी सामर्थ्य अनुसार एक हजार अथवा एक सौ या पाँच सोने का बना हुआ एक अश्व ब्राह्मण को दान करे। भगवान सुर्य के मुख से अमृतपान करते समय जो अमृत-बिंदु गिरे, उनसे शालि (अगहनी धान), मूँग और इक्षु उत्पन्न हुए शर्करा इक्षु का सार है, इसलिये हव्य-कव्य में इस शर्करा का उपयोग करना भगवान सुर्य को अति प्रिय है एवं यह शर्करा अमृतरूप है। यह शर्करा सप्तमी-व्रत अश्वमेघ यज्ञ का फल देनेवाला है। इस व्रत के करने संतान की वृद्धि होती है तथा समस्त उपद्रव शांत हो जाते हैं। इस व्रत को करनेवाला एक कल्प स्वर्ग में रहकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।