दशा माता / दशारानी चौथी कथा (Page 2/4)

वह नदी समुद्र में ऐसी जगह जाकर मिली थी, जहाँ उस राजा के बहनोई का राज्य था । समुद्र में मोती की सीपें निकाले जाने का राजा का ठेका था। रानी का सन्दूक बहता हुआ जब उस जगह पहुँचा, तो राजा ने मल्लाहों को हुक्म देकर सन्दूक को पानी से बाहर निकलवा लिया और उसे महल में भेजकर हुक्म दिया- “ इस सन्दूक को मेरे सोने के कमरे में रखा जाये । जब तक मैं ना आऊँ , इसे कोई छुए भी नहीं ।” राजा के शयनागार में सन्दूक पहुँचते ही रानी ने सुना कि राजा ने उसे समुद्र में पाया है तो वह फौरन उसे देखने के लिये चली गई । उस समय पहरेदार वहाँ से हट गया थे । रानी ने कौतुक वश सन्दूक को खुलवा डाला। उसने देखा कि भीतर एक सर्वांग-सुंदरी सोलह श्रृंगार, बारहों आभूषण से सुसज्ज्ति बैठी है । रानी ने सोचा कि यदि राजा इसे देख लेंगे तो इसी के हो जायेंगे और मुझे त्याग देंगे । इसलिये उस स्त्री का हुलिया बिगाड़ कर उसे वापस सन्दूक में बंद कर देना चाहिये । तदनुसार उसने रानी के जेवर-कपड़े सब उतरवाकर उसे मैले-कुचैले , फटे –पुराने कपड़े पहना दिये और दुबारा सन्दूक में बंद करवा दिया।
राजा जब महल में आये , तो उसने रानी को सोने के कमरे में बुलाया और पूछा- “क्यों रानी तुमने देखा, इसमें क्या है ? ” रानी ने जवाब दिया- “मैंने कुछ नहीं देखा-सुना कि क्या है क्या नहीं है ।” राजा ने रानी के सामने सन्दूक खुलवाया,तो उसमें फटे-पुराने कपड़े पहने एक भिखारिणी –सी दिख पड़ी। रानी ने कहा यह तो कोई निर्वासित भिखारिन नीच जाति-सी दिखाई देती है। इसको कारखाने में भिजवा दिया जाय । वहाँ लकड़ी ढ़ोती रहेगी और खाना पाती रहेगी। राजा ने रानी के कहे अनुसार उसे कारखाने में भेज दिया।
एक दिन रानी की सहेलियाँ नदी में स्नान करके दशारानी के गंडे ले रही थीं । उनका एक गण्डा अधिक था । वे इसी विचार में थी कि इसे किसको दिया जाय? दैवयोग से उसी समय लकड़ी वाली रानी वहाँ पहुँची । उन्होंने उससे कहा- “ बहन! यदि तुम चाहो तो हमारा यह गण्डा ले लो।” रानी नेकहा-“ मुझे गंडा लेने से इनकार नहीं है , परन्तु मुझे तो खाने भर को मिलता नहीं । इसकी पूजा कैसे करूँगी ? ” वे बोलीं- “तुम इसकी चिंता मत करो. हम रोज इसी जगह स्नान करने आया करेंगी । नौ दिन तक कथा कहा करेंगी, तुम भी नित्य कथा सुन जाया करना। दसवें दिन पूजा होगी, तब दशारानी चाहेगी, तो अवश्य तुम्हारी दशा बदल जायेगी। ” रानी ने श्रद्धापूर्वक दशारानी का ध्यान करके गंडा लिया।