दशा माता / दशारानी तीसरी कथा (Page 6/6)

दु:खिनी रास्ते भर अपनी दशा पर विचार करती हुई ससुराल जा रही थी। रास्ते में एक नदी पड़ा । उस नदी में स्नान कर अप्सरायें दशारानी का गंडा ले रही थी। उनके पास एक गंडा अधिक था। उनलोगों ने सोचा यदि इस डोली में कोई हो तो उसे हीं दशारानी का गंडा दे दें। उन्होंने डोली के पास जाकर कहार से पूछा- “इस डोली में कौन है ? ” कहार ने जवाब दिया-“ साहूकार की बहू ।”
तब उन्होंने परदा उठाकर दु:खिनी से कहा- “ हमारा एक गंडा अधिक है , इसे तुम ले लो।” वह बोली- “मुझे गंडा लेने से इनकार नहीं है ,परन्तु एक बार गंडा लिया था, और ससुराल गई थी सो अब तक दु:ख भोग रही हूँ । अब फिर गंडा लूँगी तो जाने क्या होगा।” उन्होंने कहा – “इस में गंडे का क्या दोष है, तुम्हारा ही अपराध था। अब की गंडा लेकर प्रेम से पूजन करना तो वही दशारानी सब कुछ ठीक कर देगी।” तब दु:खिनी ने गंडा ले लिया।
जब वह ससुराल पहुँची तो सभी लोगों ने उसका स्वागत किया। घर में प्रवेश करने के बाद उसने सब को कहा-“आप लोगों ने पिछली बार गंडे के बारे में तरह-तरह की बातें की थी, जिससे मैंने गंडा आग में फेंक दिया और यह दशा हुई। इस बार आप लोग मेरे दशारानी के गंडे के बारे में कोई चर्चा नहीं करेंगे। जब मेरा व्रत पूरा हो जायेगा, तब मैं विधिपूर्वक पूजा करूँगी। ”
उसके बाद नौ दिन तक कथा-कहानी होते रही । दसवें दिन दु:खिनी ने सर से स्नान किया । सुहागिनें न्यौती। विधिपूर्वक पूजा करने के बाद ; सुहागिनों का श्रृंगार किया और उनके आँचल भरे। इससे दशारानी प्रसन्न हो गई
।दशारानी ने जैसे दु:खिनी के दिन फेर बवैसे सभी के फेरे।।

॥ बोलो दशारानी की जय ॥