दशा माता / दशारानी दूसरी कथा (Page 3/3)

दशारानी कुँवर को लेकर भीतर चली गई । उसने राजकुमार को चौक में छोड़ दिया और वापस जाने लगी, परंतु छोटी रानी ने उसे देख लिया । उसने डाँटकर कहा- “खड़ी रह, तू कौन है ? तूने तीन दिन से लड़के को छिपाकर रखा हुआ था । तूने ऐसा क्यों किया ? ठहर जा इसका जवाब देती जा ।” दशारानी उसी क्षण ठहर गई । उन्होंने कहा-“ रानी ! मैं तुम्हारे पुत्र को चुराने- छिपाने वाली नहीं हूँ । मैं ही तेरी आराध्य देवी दशारानी हूँ । तुझे सचेत करने आई हूँ कि तेरी सौत (जेठी रानी ) तुझसे ईर्ष्या रखती है । वही तेरे पुत्र पर घात करने में लगी रहती है । यही उचित है कि तू अपने पुत्र को उसके पास न जाने दे । पहले उसने कुँवर के गले में साँप डाल दिया, मैंने देखा तो साँप को भगाया। दूसरी बार कुँवर को विष का लड्डू खाने को दिया, तब भी मैं वह लड्डू लेकर भागी । अबकी उसने कुँवर को कुएँ में डाल दिया था और मैंने इसकी रक्षा की । इस समय भिखारिणी के वेश में तुझे चेतावनी देने आई हूँ ।”
यह सुनकर रानी भगवती दशारानी के पैरों में गिर पड़ी । उसने विनीत भाव से प्रार्थना की – “जैसे कृपा करके आपने साक्षात दर्शन दिये हैं, वैसे ही अब इस महल में सदैव रहिये । मुझसे जो सेवा- पूजा बनेगी, सो करूँगी ।” तब दशारानी ने उत्तर दिया- “ मैं किसी के घर में नहीं रहती ; जो श्रद्धापूर्वक मेरा ध्यान-स्मरण करता है, उसी के हृदय में रहती हूँ । मैंने तुम्हें साक्षात दर्शन दिये हैं इसी के उपलक्ष्य में सुहागिनों को न्यौत कर उनको यथाविधि आदर- सत्कार के साथ भोजन करवाओ । अपने राज्य में घोषणा करवाओ कि सभी लोग मेरा गंडा लिया करे एवं व्रत किया करें । ” यह कहकर दशारानी अंतर्ध्यान हो गई । रानी ने पूरे राज्य की सुहागिनों को निमंत्रण देकर बुलाया । उबटन से लेकर शिरोभूषण –श्रृंगार तक उनकी यथाविधि शुश्रूषा करके गहने आदि देकर आँचल भरे और भोजन कराके विदा किया । पूरे राज्य में ढ़िंढ़ोरा पिटवा दिया कि अब सब लोग दशारानी के गंडे लिया करें । जैसे दशारानी ने छोटी रानी के पुत्र को बचाया वैसे सब की रक्षा करे।

॥ बोलो दशारानी की जय ॥