वरुथिनीी एकादशी व्रत विधि एवं कथा - varuthini Ekadashi Vrat Vidhi and Katha in Hindi

वैशाख मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी वरुथिनी एकादशी कहलाती हैं। इस वर्त के करने से मनुष्य को सुख तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

वरुथिनी एकादशी व्रत महात्म्य:- (Importance of varuthini Ekadashi)

यह व्रत सौभाग्य देनेवाला है। इस व्रत के दिन दान करने से कन्यादान एवं हजारों वर्षों के तपस्या के समान फल की प्राप्ति होती है। इसके करने से सभी दु:ख दूर हो जाते हैं। मनुष्य इस लोक के सभी सुख भोग कर स्वर्गलोक को प्राप्त होता है। घोड़े के दान से, हाथी का दान श्रेष्ठ है। भूमिदान उससे भी बड़ा है। भूमिदान से भी अधिक महत्व तिलदान का है। तिलदान से बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्णदान से बढ़कर अन्नदान है, क्योंकि देवता, पितर तथा मनुष्यों को अन्न से ही तृप्ति होती है। विद्वान पुरुषों ने कन्यादान को भी अन्नदान के समान बताया है। कन्यादान के तुल्य ही धेनु का दान है। ऊपर बताये हुए सब दानों से बड़ा विद्यादान है । मनुष्य ‘वरुथिनी’ एकादशी व्रत करके विद्यादान का भी फल प्राप्त कर लेता है ।

वरुथिनी एकादशी व्रत पूजन सामग्री:- (Puja Saamagree for varuthini Ekadashi Vrat)

∗ श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति
∗ कलश(मिट्टी अथवा ताम्बेका)
∗ धान्य
∗ लाल वस्त्र
∗ पुष्प
∗ पुष्पमाला
∗ नारियल
∗ सुपारी
∗ अन्य ऋतुफल
∗ धूप
∗ दीप
∗ घी
∗ पंचामृत (दूध(कच्चा दूध),दही,घी,शहद और शक्कर का मिश्रण)
∗ अक्षत
∗ तुलसी दल
∗ चंदन- लाल
∗ मिष्ठान

वरुथिनी एकादशी व्रत की विधि (Puja Method Of varuthini Ekadashi)

इस एकादशी के एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि को जौ, गेहूं और मूंग की दाल आदि का सेवन नहीं करना चाहिये। बिना नमक का भोजन करें। रात्रि में भूमि पर हीं शयन करें यदि सम्भव हो तो श्रीविष्णुबह्गवान के विग्रह के पास हीं शयन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो मिट्टी, तिल एवं आंवले का लेप लगाकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को शुद्ध कर लें। सभी सामग्री एकत्रित कर लें। धान्य को भूमि पर रखें, उसके ऊपर जल से भरा हुआ मिट्टी अथवा ताम्बे का कलश स्थापित करें। कलश पर लाल वस्त्र बांधे। धूप, दीप, पुष्प आदि से कलश का पूजन करें। श्री विष्णु जी का पूजन षोडशोपचार विधि से करें। पुष्प, माला अर्पित करे। धूप, दीप दिखायें और भोग लगायें। तत्पश्चात एकादशी की कथा सुने अथवा सुनायें। श्री विष्णु भगवान एवं एकादशी माता की आरती करें। रात्रि जागरण करें। द्वादशी के दिन प्रात: स्नान कर पूजन करें। ब्राह्मण को दान दें। इसके उपरांत भोजन ग्रहण करें।

दशमी तिथि को निम्नलिखित दस वस्तुओं का त्याग करें :-

∗१. कांसे के बर्तन का उपयोग भोजन के लिये नहीं करना।
∗ २. उड़द
∗ ३. मसूर
∗ ४. चना
∗ ५. कोदो
∗ ६. शाक
∗ ७. मधु
∗ ८. दूसरे का दिया हुआ अन्न
∗ ९. दो बार भोजन
∗ १०. पारस्परिक सम्बंध

एकादशी तिथि को निम्नलिखित ग्यारह बातों का त्याग करें :-

१. जुआ खेलना
∗ २. नींद लेना
∗ ३. पान खाना
∗ ४. दातुन करना
∗ ५. दूसरों की निंदा करना
∗ ६. चुगली खाना
∗ ७. चोरी
∗ ८. हिंसा
∗ ९. पारस्परिक सम्बंध
∗ १०. क्रोध
∗ ११. असत्य भाषण

द्वादशी तिथि को निम्नलिखित बारह बातों का त्याग करें :-

१. काँस
∗ २. उड़द
∗ ३. शराब
∗ ४. मधु
∗ ५. तेल
∗ ६. पतितों से वार्तालाप
∗ ७. व्यायाम
∗ ८. परदेश गमन
∗ ९. दो बार भोजन
∗ १०. पारस्परिक सम्बंध
∗ ११. बैल की पीठ पर सवार
∗ १२. मसूर