पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Page 1/4)

युधिष्ठिर ने पूछा- “ मधुसूदन ! श्रावण के शुक्ल पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है ? कृपया मेरे सामने उसका वर्णन किजिये।”
भगवान श्री कृष्ण बोले- “ राजन ! प्राचीन काल की बात है, द्वापर युग के प्रारम्भ का समय था, महिष्मतीपुर में राजा महीजित अपने राज्य का पालन करते थे , किन्तु उन्हें कोई पुत्र नहीं था ; इसलिये वह राज्य उन्हें सुखदायी प्रतीत नहीं होता था ।
अपनी अवस्था अधिक देख राजा को बड़ी चिन्ता हुई । उन्होंने प्रजा वर्ग में बैठकर इस प्रकार कहा- प्रजाजनो ! इस जन्म में मुझसे कोई पातक नहीं हुआ।
मैंने अपने खजाने में अन्याय से कमाया धन नहीं जमा किया है । ब्राह्मणों और देवताओं का धन भी मैंने कभी नहीं लिया है।
प्रजा का पुत्रवत पालन किया। धर्म से पृथ्वी पर अधिकार जमाया तथा दुष्टों को, वे बन्धु और पुत्रों के समान ही क्यों न रहे हो , दण्ड दिया है।
शिष्ट पुरुषों का सदा सम्मान किया और किसी को द्वेष का पात्र नहीं समझा।
फिर क्या कारण है, जो मेरे घर में आज तक पुत्र उत्पन्न नहीं हुआ। आपलोग इसका विचार करे।”