शीतला षष्टी व्रत विधि एवं व्रत कथा

शीतला षष्टी का व्रत माघ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि अथवा छठी तिथि को किया जाता है। यह व्रत इस वर्ष 23 January 2018 Tuesday [२३ जनवरी २०१८ मंगलवार] को है। इस व्रत के प्रभाव से संतान-सुख तथा दीर्घायु की प्राप्ति होती है। इस व्रत को बासियौरा भी कहा जाता है।यह व्रत बंगाल तथा उत्तर भारत में ज्यादातर प्रचलित है। इस दिन माता शीतला की पूजा की जाती है।

शीतला षष्टी व्रत के नियम:-

स्नान के लिये गर्म जल का प्रयोग निषेध है।
स्त्रियों को गर्म भोजन नहीं करना चाहिये।
व्रत के दिन आग न जलायें।
घर के सभी सदस्य बासी भोजन हीं करे।

शीतला षष्टी व्रत पूजन सामग्री:-

शीतला माता की मूर्ति
वस्त्र
धूप
दीप
घी
कपूर
पुष्प
पुष्पमाला
अक्षत
चंदन
जल-पात्र
आसन
नैवेद्य (एक दिन पूर्व बना हुआ भोजन)
चौकी अथवा लकड़ी का पटरा

शीतला षष्ठी व्रत विधि | Sheetla Shashti Vrat Method

प्रात:काल उठ कर नित्य क्रिया से निवृत हो स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा गृह को शुद्ध कर लें। पूजा के लिये सभी नैवेद्य अथवा भोग एक दिन पूर्व हीं बना कर रख लें। लकड़ी के पटरे अथवा चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछाकर, उस पर शीतला माता की मूर्ति अथवा चित्र को स्थापित करें। स्वयं आसन पर बैठ जायें।
आवाहन:-
सबसे पहले हाथ मे जल लेकर निम्न मंत्र के साथ शीतला माँ का आवाहन करें:-
“ॐ श्रीं शीतलायै नमः, इहागच्छ इह तिष्ठ”
जल माँ के चरणों पर अर्पित करें।

आसन :-
हाथ में वस्त्र अथवा मौली लेकर आसन के रूप में माँ को अर्पित करें।
पाद्य:-
पैरों को धोने के लिये जल अर्पित करें।
आचमन:-
आचमन के लिये जल अर्पित करें।
स्नान
स्नान लिये जल अर्पित करें।
वस्त्र
वस्त्र मंत्र के साथ वस्त्र अर्पित करें।
इदं वस्त्र समर्पयामि , ॐ श्रीं शीतलायै नमः
उपवस्त्र:-
उपवस्त्र अर्पित करें।
गंधाक्षत –
चंदन तथा अक्षत का तिलक अर्पित करें।
पुष्प –पुष्प एवं पुष्पमाला अर्पित करें।
धूप –धूप दिखायें।
दीप – माता को दीप अर्पित करें।
नैवेद्य – बासी भोजन का भोग अर्पित करें।
आचमन
आचमन के लिये पुन: जल अर्पित करें।
शीतला षष्ठी व्रत कथा:- अब शीतला षष्ठी व्रत की कथा सुनें अथवा सुनायें।
आरती:- कथा के बाद माँ शीतला की आरती करें ।
जल से प्रोक्षण कर माँ शीतला तथा सभी देवी-देवताओं को आरती दें। उसके बाद उपस्थित जंनों को आरती दें।
पुष्पांजलि:-
हाथ में फूल लेकर मंत्र के साथ पुष्पांजलि अर्पित करें।

क्षमा प्रार्थना:-

दोनों हाथ जोड़कर माँ शीतला से क्षमा प्रार्थना करते हुये कहे :-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीन क्रियाहींन भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥

इसके बाद उपस्थित जनों मे प्रसाद वितरित करें तथा स्वयं भी भोजन ग्रहण करें।