।।संत महिमा।।

एक जंगल में एक संत अपनी कुटिया में रहते थे।
एक किरात (शिकारी), जब भी वहाँ से निकलता संत को प्रणाम ज़रूर करता था।
एक दिन किरात संत से बोला की बाबा मैं तो मृग का शिकार करता हूँ,
आप किसका शिकार करने जंगल में बैठे हैं.?
संत बोले - श्री कृष्ण का, और फूट फूट कर रोने लगे।
किरात बोला अरे, बाबा रोते क्यों हो ?
मुझे बताओ वो दिखता कैसा है ? मैं पकड़ के लाऊंगा उसको।
संत ने भगवान का वह मनोहारी स्वरुप वर्णन कर दिया....
कि वो सांवला सलोना है, मोर पंख लगाता है, बांसुरी बजाता है।
किरात बोला: बाबा जब तक आपका शिकार पकड़ नहीं लाता, पानी भी नही पियूँगा।
फिर वो एक जगह जाल बिछा कर बैठ गया...
3 दिन बीत गए प्रतीक्षा करते करते, दयालू ठाकुर को दया आ गयी, वो भला दूर कहाँ है,
बांसुरी बजाते आ गए और खुद ही जाल में फंस गए।
किरात तो उनकी भुवन मोहिनी छवि के जाल में खुद फंस गया और एक टक शयाम सुंदर को निहारते हुए अश्रु बहाने लगा,
जब कुछ चेतना हुयी तो बाबा का स्मरण आया और जोर जोर से चिल्लाने लगा शिकार मिल गया, शिकार मिल गया, शिकार मिल गया,
और ठाकुरजी की ओर देख कर बोला, अच्छा बच्चु .. 3 दिन भूखा प्यासा रखा, अब मिले हो, और मुझ पर जादू कर रहे हो।
शयाम सुंदर उसके भोले पन पर रीझे जा रहे थे एवं मंद मंद मुस्कान लिए उसे देखे जा रहे थे।
किरात, कृष्ण को शिकार की भांति अपने कंधे पे डाल कर और संत के पास ले आया।
बाबा, आपका शिकार लाया हुँ... बाबा ने जब ये दृश्य देखा तो क्या देखते हैं किरात के कंधे पे श्री कृष्ण हैं और जाल में से मुस्कुरा रहे हैं।
संत के तो होश उड़ गए, किरात के चरणों में गिर पड़े, फिर ठाकुर जी से कातर वाणी में बोले -
हे नाथ मैंने बचपन से अब तक इतने प्रयत्न किये, आप को अपना बनाने के लिए घर बार छोडा, इतना भजन किया आप नही मिले और इसे 3 दिन में ही मिल गए...!!
भगवान बोले - इसका तुम्हारे प्रति निश्छल प्रेम व कहे हुए वचनों पर दृढ़ विश्वास से मैं रीझ गया और मुझ से इसके समीप आये बिना रहा नहीं गया।
भगवान तो भक्तों के संतों के आधीन ही होतें हैं।
जिस पर संतों की कृपा दृष्टि हो जाय उसे तत्काल अपनी सुखद शरण प्रदान करतें हैं। किरात तो जानता भी नहीं था की भगवान कौन हैं,
पर संत को रोज़ प्रणाम करता था। संत प्रणाम और दर्शन का फल ये है कि 3 दिन में ही ठाकुर मिल गए ।
यह होता है संत की संगति का परिणाम!!

"संत मिलन को जाईये तजि ममता अभिमान,
ज्यो ज्यो पग आगे बढे कोटिन्ह यज्ञ समान"