पापांकुशा एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page 1/2)

युधिष्ठिर ने पूछा- “मधुसूदन! अब कृपा करके यह बताइये कि आश्विन के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? ”
भगवान श्री कृष्ण बोले- “राजन ! आश्विन के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, वह ‘पापाङ्कुशा’ के नाम से विख्यात है। वह सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम है। उस दिन सम्पूर्ण मनोरथ की प्राप्ति के लिये मनुष्यों को स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाले पद्मनाभसंज्ञक मुझ वासुदेव का पूजन करना चाहिये। जितेंद्रिय मुनि चिरकाल तक कठोर तपस्या करके जिस फल को प्राप्त करते हैं, वह उस दिन भगवान गरुड़ध्वज को प्रणाम करने से ही मिल जाता है। पृथ्वी पर जितने तीर्थ और पवित्र देवालय है, उन सबके सेवन का फल भगवान विष्णु के नाम कीर्तन मात्र से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जो शार्ङ्गधनुष धारण करनेवाले सर्वव्यापक भगवान जनार्दन की शरण में जाते हैं , उन्हें कभी यमलोक की यातना नहीं भोगनी पड़ती । यदि अन्य कार्य के प्रसङ्ग से भी मनुष्य एकमात्र एकादशी को उपवास कर ले तो उसे कभी यम-यातना नहीं प्राप्त होती ।