दूर्वा गणपति | Durva Ganpati
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को दूर्वा गणपति का व्रत करना चाहिये। इस व्रत को करने वाला वांछित मनोरथों को प्राप्त करता है और अंत में शिवलोक को जाता है। जो तीन वर्ष तक यह व्रत करता है वह सिद्धियों को प्राप्त करता है। जैसे दूर्वा अपनी शाखाओं के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होती है, उसी प्रकार व्रती मनुष्य की संतति निरंतर बढ़ती रहती है। सुख चाहने वालों को यह व्रत अवश्य करना चाहिये।
पूजा विधि एवं महात्म्य:-
उस चतुर्थी के दिन स्वर्ण पीठासिन एकदन्त गजानन विघ्नेश की स्वर्णमयी प्रतिमा बनाकर उसके आधार पर स्वर्णमय दूर्वा को व्यवस्थित करने के पश्चात् विघ्नेश्वर की रक्त वस्त्र से वेष्टित ताम्रमय पात्र के ऊपर रखकर सर्वतोभद्रमंडल में रक्त पुष्पों से, आपामार्ग-शमी-दूर्वा-बिल्वपत्र इन पत्रों से , अन्य उपलब्ध सुगंधित पुष्पों से, सुगंधित द्रव्यों से, फलों तथा मोदकों से उनकी पूजा करने चाहिये। उसके बाद उन्हें उपहार अर्पित करना चाहिये। इस प्रकार अनेक उपचारों से गिरिजापुत्र विघ्नेश की पूजा करनी चाहिये।
पूजा के समय इस प्रकार कहना चाहिये:-
सिंदूर से चित्रित तथा कुंकुम से रंगा हुआ यह वस्त्र आपके लिये है, इसे आप ग्रहण करें। लम्बोदर तथा सभी विघ्नों का नाश करने वाले देवता को नमस्कार है। उमा के शरीर के मैल से आविर्भूत हे गणेशजी! आप इस चंदन को स्वीकार करें।
हे सुरश्रेष्ठ!मैंने भक्ति के साथ आपको रक्तचंदन से मिश्रित अक्षत अर्पण किया है, हे सुरसत्तम! आप इसे स्वीकार करें। मैं चम्पा के पुष्पों, केतकी के पत्रों तथा जपाकुसुम के पुष्पों से गौरी पुत्र की पूजा करता हूँ, आप मेरे ऊपर प्रसन्न हों। सभी लोकों पर अनुग्रह करने तथा दानवों का वध करने के लिये स्कंदगुरु के रूप में अवतार ग्रहण करनेवाले ; आप प्रसन्नतापूर्वक यह धूप ग्रहण लीजिये। परम ज्योति प्रकाशित करनेवाले तथा सिद्धियों को देनेवाले आप महादेव पुत्र को मैं दीप अर्पण करता हूँ, आपको नमस्कार है।
जो पाँच वर्ष तक इस प्रकार व्रत करके उद्यापन करता है, वह वांछित मनोरथोंको प्राप्त करता है और देहांत के बाद शिवलोक को जाता है। जो तीन वर्ष तक यह व्रत करता है वह सिद्धियों को प्राप्त करता है। हे वस्त्र इस प्रकार व्रत करनेपर मनुष्य सभी मनोरथों को पा लेता है। जैसे दूर्वा अपनी शाखाओं के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होती है, उसी प्रकार व्रती मनुष्य की संतति निरंतर बढ़ती रहती है। सुख चाहने वालों को यह व्रत अवश्य करना चाहिये।
॥ इति दूर्वा गणपति ॥