दुर्गन्धि- दुर्भाग्यनाशक व्रत |Durgandhi Durbhagya Nashak Vrat

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को दुर्गंधि-दुर्भाग्यनाशक नामक व्रत किया जाता है। इस व्रत के करने से शरीर की दुर्गन्ध दूर होती है एवं दुर्भाग्य का भी नाश हो जाता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सौभाग्यशाली हो जाता है।

व्रत विधि

इस व्रत में सुर्योदय से पहले उठकर नित्य कर्म कर स्नान कर लें।स्वच्छ वस्त्र पहन लें। उसके बाद सुर्यदेव का ध्यान करें।तत्पश्चात् किसी उद्यान, बगीचे, पार्क या जिस किसी भी स्थान पर सफेद आक, लाल कनेर (करवीर) तथा नीम (निम्ब) का वृक्ष हो, उस स्थान पर जाकर इन तीनों वृक्ष की धूप,दीप,अक्षत,पुष्प और नैवेद्य अर्पित कर पूजन करें। पूजन के बाद दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करें।

व्रत विधि एवं महात्म्य

राजा युधिष्ठिर ने पूछा- ‘यदुशार्दूल! ऐसा कौन-सा व्रत है, जिसके आचरण से शरीर का सुर्गन्ध नष्ट हो जाय और दुर्भाग्य भी दूर हो जाय। ’
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- महाराज! इसी प्रश्न को रानी विष्णुभक्ति ने जातूकर्ण्यमुनि से पूछा था, तब उन्होंने उनसे कहा- देवि! ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी में पवित्र जलाशय में स्नान करे और शुद्ध स्थान में उत्पन्न श्वेत आक, रक्त करवीर तथा निम्ब-वृक्ष की पूजा करे।
ये तीनों वृक्ष भगवान सुर्य को अत्यंत प्रिय हैं। प्रात:काल सुर्योदयहो जानेपर भगवान सुर्य का दर्शन कर उनका अपने हृदय में ध्यान करे। अनन्तर पुष्प, नैवेद्य, धूप आदि अपचारों से उन वृक्षों की पूजा करें और पूजन के अनन्तर उन्हें नमस्कार करें।
राजन! इस विधि से जो स्त्री-पुरुष इस व्रत को करते हैं, उनके शरीर की दुर्गनन्धि तथा उनका दौर्भाग्य दोनों दूर हो जाते हैं और वे सौभाग्यशाली हो जाते हैं।