दशा माता / दशारानी पाँचवी कथा (Page 2/2)

तभी दशामाता की कृपा से सास ने बहू से कहा -‘ मैं आज खेतो मैं जा रही हूँ । यदि मुझे आने मैं देर हो जाये तो तुम मेरे लिए खेत पर खाना ले आना। ’ बहु के मन की बात पूरी हो गयी।वह तो यही चाहती थी । उसने सास से कहा -‘ आप निश्चिन्त होकर जाइये , घर का सारा काम मैं निपटा लुंगी |’
सास के जाते ही बहू ने सर से स्नान किया और विधिपूर्वक दशारानी की पूजा की । पूजा के बाद वह पूजा की सामग्री मिट्टी के गोले में रखकर उसे भेटकर तालाब में सिराने जा ही रही थी कि सास घर वापस आ गई। बहू को जब गोले को छुपाने की जगह नहीं मिली तो उसने उस गोले को छाँछ की मटकी में छिपा दिया । बहू ने सोचा कि जब सास दुबारा घर से बाहर जायेगी तो गोला छाँछ से निकाल कर सिरा आऊँगी।
सास ने आते ही बहू को आवाज लगाई- “इतनी देर से क्या कर रही थी ? तू मेरा खाना लेकर खेत पर क्यों नहीं आई ? ” बहू ने उत्तर दिया- “आज मैंने सिर से स्नान किया है, उसी से देर हो गई ; आप हाथ-मुँह धोकर बैठिये। मैं भोजन परोसती हूँ ।” सास का गुस्सा कुछ शांत हुआ, वह हाथ-मुँह धोकर चौके में बैठी हीं थी कि उसका बेटा आ गया । वह भी माता के साथ चौके में भोजन करने को बैठ गया। माता ने जैसे हीं भोजन समाप्त कर उठना चाहा कि बेटे ने कहा- “मुझे तो छाँछ चाहिये ।” माता ने बहू से कहा- “बहू, छाँछ लेकर आ । ” बहू ने कहा- “मैं तो रसोई के भीतर हूँ , आप ही छाँछ दे दो ।” माता भोजन करके उठी, हाथ धोकर छाँछ लेने गई ,परंतु ज्यों ही उसने छाँछ की मटकी उठाई कि उसे उसमें खड़खड़ाता हुआ कुछ दिखाई दिया । सास ने जब हाथ डालकर देखा तो एक बड़ा सोने का गोला था।
सास ने बहू से पूछा- “अरी, इसमें यह क्या है ? इसे तू कहाँ से लाई है ? यहाँ क्यों छिपा के रखा है ? अब मुझे पता चला इसलिये तू छाँछ नहीं देने आई । इसका भेद बता ; नहीं तो अभी तेरी खबर लेती हूँ।” बहू बोली-
“मैं क्या जानूँ, मेरी दशारानी जाने । मैंने आपसे छुपाकर दशारानी का गंडा लिया था । चोरी से पूजा की थी । मैं गंडा सिराने जा रही थी, कि आप आ गई । तब मैंने उसे छाँछ की मटकी में छिपा दिया था । दशारानी ने उसे सोने का कर दिया, तो इसके लिये मैं क्या करूँ। ”
सास ने बहू को गले से लगाते हुये कहा- “अब मैं भी तेरे साथ गंडा लिया करूँगी और विधिवत व्रत और पूजन किया करूँगी। हे दशारानी जैसे तूने मुझे दिया वैसे हीं अपने सब भक्तों को देना । ”

॥ बोलो दशारानी की जय ॥