दशा माता / दशारानी का व्रत
मनुष्य या किसी भी वस्तु की स्थिति का परिवर्तन अलौकिक शक्ति के द्वारा होता है। उस अलौकिक शक्ति का नाम है दशारानी । मनुष्य की दशा अनुकूल होने पर उसका चारों ओर से कल्याण होता है। जबकि यदि दशा प्रतिकूल हो तो अच्छ काम भी बुरा प्रभाव देने लगते हैं ।
इसीलिये दशारानी माता की पूजा की जाती है और उनके नाम के गँडे लिये जाते हैं । दशा माता की अनुकूलता के लिये दशारानी का व्रत और पूजन किया जाता है।
कब लें दशा माता / दशारानी के गंडे
जब तुलसी का वृक्ष स्वयं निकल आये यानी तुलसी का ऐसा वृक्ष जो एक जगह से उखाड़कर दूसरी जगह न लगाया हुआ हो, वरन् जहाँ उगे वही हो, बाल निकले; गाय पहला बछड़ा जने; पहलौठी घोड़ी के बछेड़ा हो; स्त्री की प्रथम संतान बालक हो; तो इस तरह के सुखद समाचार पाकर दशारानी के व्रत का संकल्प लिया जाता है। किंतु इसमें ध्यान देने योग्य बातें यह है कि पैदा हुए बच्चे अच्छी घड़ी में हुए हों। ऐसी स्थिति में दशा रानी का गंडा लिया जाता है।
नौ सूत कच्चे धागे के और एक सूत व्रत रखने वाली के आंचल के, इन दस सूतों का एक गंडा बनाकर उसमें गाँठ लगाई जाती है । दिन भर व्रत रहने के बाद शाम को गंडे की पूजा होती है । नौ व्रत तक तो शाम को पूजा होती है, परंतु दसवें व्रत मे जब पूजा होती है, तो मध्याह्न के पूर्व ही होती है । जिस दिन दशा रानी का व्रत हो, उस दिन जब तक पूजा न हो जाय, किसी को कोई वस्तु, यहाँ तक कि आग भी, नहीं दी जाती । पूजा के पहले उस दिन किसी का स्वागत भी नहीं किया जाता ।
एक नोक वाले पान पर चन्दन से दशा रानी की प्रतिमा बनाई जाती है।
जमीन में चौक पूरकर उस पर पटा रखकर उस पर पान रक्खा जाता है। पान के ऊपर गंडे को दूध में डुबाकर रख दिया जाता है। उसी की हल्दी और अक्षर से पूजा होती है और घी, गुड़, बताशा आदि का भोग लगता है। हवन के अन्त में कथा कही जाती है। कथा हो चुकने पर पूजा की सामग्री को गीली मिट्टी के पिंड में रखकर मौन होकर व्रतवाली भेंटती है, फिर आप ही उसे कुँआ या तालाब आदि जलाशय में सिराकर तब पारणकरती है। पारण करते समय किसी से बोलना वर्जित है। जितना पारण सामने परोस लें, उसमें से कुछ छोड़ना भी नहीं चाहिये । थाली धोकर पी लेना चाहिये।
पूजन सामग्री:-
∗ नोक वाला पान ∗ चंदन ∗ हल्दी ∗ अक्षत ∗ लकड़ी का पटरा ∗ गुड़ ∗ घी ∗ वताशा ∗ हवन के लिये:- ∗ आम की लकड़ी ∗ हवन सामग्री
दशा माता / दशारानी पूजन विधि
जब भी कोई अच्छी खबर मिले तब दशारानी के गंडे लिये जाते हैं। खबर सुनने के बाद घर आकर नौ सूत कच्चे धागे के और एक सूत जिसे व्रत रखना है उसके आंचल के लेकर, इन दस सूतों का एक गंडा बनाकर गाँठ लगायें। दिन भर व्रत रहने के बाद शाम को गंडे की पूजा करें।। नौ दिनों तक पूरे दिन व्रत करें और शाम को पूजा करके कथा सुने अथवा सुनायें। प्रत्येक दिन एक-एक कथा कहे या सुने। दसवें दिन सुबह उठक्र नित्य कर्म कर सर से स्नान करें। घर को स्वच्छ कर लें । पूजा के स्थान पर चौक (अल्पना) बनायें। चौक पर एक लकड़ी का पटरा रखें। एक नोक वाले पान पर चंदन से दशारानी का चित्र बनायें। इस पान को पटरे पर रखें । गंडे को दूध मेंडुबाकर पान के ऊपर रख दें। हल्दी, अक्षत से गंडे की पूजा करें। घी,गुड़, बताशा का भोग लगायें। उसके बाद हवन करें। हवन के बाद पहली कथा फिर से कहें। कथा कहने के बाद पूजन की सामग्री को गीली मिट्टी के पिंड में रखकर मौन होकर व्रत रखनेवाली मिलायें। उसके बाद किशी जलाशय या तालाब में जाकर सिराये (जल में प्रवाहित करें)। उसके बाद घर आकर पारण करे। पारण के लिये जितना अन्न लें सब खा लें, थाली में कुछ भी नहीं बचना चाहिये। पारण के वक्त मौन रहें ।थाली धोकर पी लें।
जिस दिन दशा रानी का व्रत हो, उस दिन जब तक पूजा न हो जाय, किसी को कोई वस्तु, यहाँ तक कि आग भी, नहीं दी जाती । पूजा के पहले उस दिन किसी का स्वागत भी नहीं किया जाता ।