राम-नाम की महिमा

एक बार समुद्र तट पर एक मनुष्य उदास बैठा था। तभी उधर से रामभक्त लंकापति विभीषण गुजरे। उन्होंने उस मनुष्य से पूछ- “तुम उदास क्यों है ? मुझे बताओ ।”
उस मनुष्यने कहा की मुझे समुद्र पार जाना है लेकिन मेरे पास कोई साधन नहीं है। । अब क्या करूँ ,मुझे इसबात की चिंता है। अरे भाई, इसमें इतने अधिक उदास क्यों होते हो?
ऐसा कहकर विभीषण ने एक पत्ते पर एक नाम लिखा तथा उसके धोती के पल्लू से बाँधते हुए कहाः इसमें मैंने तारक मंत्र बाँधा है। तू भगवान पर श्रद्धा रखकर तिनक भी घबराये बिना पानी पर चलते आना। अवश्य पार लग जायेगा।
विभीषण के वचनों पर विश्वास रखकर वह व्यक्ति समुद्र की ओर आगे बढ़ने लगा। वहं व्यक्ति सागर के सीने पर नाचता-नाचता पानी पर चलने लगा। वह मनुष्य जब समुद्र के बीच में आया तब उसके मन में संदेह हुआ कि विभीषण ने ऐसा कौन सा तारक मंत्र लिखकर मेरे पल्लू से बाँधा है कि मैं समुद्र पर सरलता से चल सकता हूँ। मुझे जरा देखना चाहिए। उस व्यक्ति ने अपने पल्लू में बँधा हुआ पत्ता खोला और पढ़ा तो उस पर दो अक्षर में केवल राम नाम लिखा हुआ था।
राम नाम पढ़ते ही उसकी श्रद्धा तुरंत ही अश्रद्धा में बदल गयीः अरे ! यह कोई तारक मंत्र है ! यह तो सबसे सीधा सादा राम नाम है ! मन में इस प्रकार की अश्रद्धा उपजते ही वह मनुष्य डूब कर मर गया।
कथा सार: इस लिये कहते हैं कि श्रद्धा और विश्वास के मार्ग में संदेह नहीं करना चाहिए क्योंकि अविश्वास एवं अश्रद्धा से ऐसी विकट परिस्थितियाँ बन जाती है कि मंत्र जप से काफी ऊँचाई तक पहुँचा हुआ साधक भी विवेक के अभाव में संदेह का शिकार होकर अपना सरलता से पतन कर बैठता है। इस लिये साधारण मनुष्य को तो संदेह का आँच ही गिराने के लिए पर्याप्त है। हजारों-लाखों-करोड़ों मंत्रों की साधना जन्मों-जन्मों की साधना अपने सदगुरू पर संदेह करने मात्र से नष्ट हो जाती है।