जीवन में ज्ञान की कमाई
एक संत महात्मा थे, उनका एक शिष्य था। उसे अपने ज्ञान और बुद्धि पर बड़ा घमंड था। महात्मा अपने शिष्य के घमंड को दूर करना चाहते थे। अत: एक दिन सवेरे हीं वे अपने शिष्य के साथ यात्रा के लिये निकल पड़े ।दोपहर को वे दोनों एक खेत के पास रुके। वहाँ उन्होंने देखा कि एक किसान अपने खेत में क्यारियांबना कर सींच रहा है। वे दोनों थोड़ी देर वहीं ठहरे रहे, परंतु उस किसान ने उन दोनों की तरफ एक बार भी नहीं देखा और अपने काम में तल्लीन रहा ।
वे दोनों वहां से आगे चले संध्या के समय वे एक लुहार की दुकान के पास पहुँचे। उन्होंने देखा कि लुहार लोहे को पीट रहा है और पसीने से तर-बतर है । गुरु-शिष्य काफी देर लुहार की दुकान पर खड़े रहे लेकिन लुहार ने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया ।गुरु-शिष्य वहां से आगे बढ़े और रात्रि के समय एक सराय में पहुँचे । वे थकान से चूर थे। वहाँ पर तीन और मुसाफिर भी थे। गुरु ने शिष्य से कहा – “तुमने देखा कुछ पाने के लिये कुछ देना भी पड़ता है ।
किसान अन्न उगाने के लिये अपना तन - मन लुटा देता है ।धातु को सिद्ध करने के लिये , लुहार को अपने शरीर की ऊर्जा लगानी पड़ती है । यात्री अपनेको चुकाकर मंजिल तक पहुँचता है । तुमने ज्ञान के पोथे-पर-पोथे रट डालेडाले, लेकिन कितना ज्ञान पा लिया ? ज्ञान तो कमाई है । अपने कर्मों से ज्ञान को सींचो । जीवन की आंच में ज्ञान रूपी धातु सिद्ध करो । मार्ग में अपने को चुकाकर ज्ञान की मंजिल तक पहुंचो।
ज्ञान को जो कमाता है, ज्ञान उसी के पास जाता है। ”