कर्म से हीं फल है
एक शिव मंदिर में प्रतिदिन एक चोर और एक पंडित जाते थे । एक दिन जब वे दोनों मदिर से लौट रहे थे तब चोर को अशर्फी से भरी एक थैली मिली । उसी समय पंडित के पैर में एक कील चुभ गई । यह देख कैलाशपर बैठे हुये शिवजी को मुस्काते हुये देख पार्वती जी ने कहा- “देव आप मुस्कार रहे हैं ? जबकि आपके भक्त के पैर में कील चुभ गया है और चोर को स्वर्ण मुद्रायें मिली । ऐसा क्यों ?”
शिवजी ने पार्वती से कहा- “देवी यह सब कर्म का फल है”
पार्वतीजी ने कहा- “विस्तार से बतायें ; प्रभु ।”
शिवजी ने कहा- “चोर और पंडित प्रतिदिन गाँव के शिवलिंग में जाते हैं । पंडित मंदिर में जाकर श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करता है और मेरे मंत्रों का घंटों जाप करता है । ठीक उसी समय चोर भी प्रतिदिन मंदिर जाता है लेकिन वह (चोर) अपने सभी बुराईयों का कारण मुझे (भगवान शिव ) ठहराता है और कोसता है ।
आज के दिन इस चोर को राजगद्दी मिलने का योग था लेकिन बुरे कर्म के कारण उसे केवल एक थैली स्वर्ण मुद्रायें ही मिली । जबकि आज के दिन इस पंडित को मृत्युदंड मिलना था, वह इसके अच्छे कर्म के कारण एक कील के चुभन की पीड़ा में तब्दील हो गई ।
हे पार्वती । सभी को अपने कर्मों के अनुसार जहीं फल की प्राप्ति होती है । ”